Monday, January 7, 2019

आलस ज्ञान


आज करे सो काल कर काल करे सो परसो हड़बड़ हड़बड़ काहे करत जीना है सौ बरसो।।

ये वाला लाइन झा सर माइंड में बचपने में अइसा फ़ीड किए हैं कि का बताये आलस करना हॉबी बन गया है। बिस्तर में लेट जाओ अऊ  दीवार को देखते रहो, सोचते रहो सोचते रहो कि अइसा  का करू की कुछों काम न करना पड़े,  कोई भी काम न करने के लिए परफेक्ट बहाना बनाना, अरे बड़ी मेहनत लगता है ये सब में। हमारे पास कोई कुछ कामं लेके तो आ जाये, पहले तो हम सामने वाले को कंविन्स करते हैं, ये जो काम जो आप बोल रहें है न वो सही नही है इस काम के जगह दूसरा काम, जो हमसे नही किसी और से होगा, वही सबसे सही काम है घर वाले तो अब कुछों नही कहते हैं सब जान गए हैं जीतने देर में हम काम करने को राजी होंगे उतने देर में वे खुदे कर लेंगे। ये बहाना बनाने वाला टेकनीक कई बार अइसा काम किया है की हमारे सुझाव को अमल लाने वाले हमको बहुत मानते हैं वो सोचते हैं की हम उनको सही रास्ता दिखाये  पर हम जानते हैं, ये सब भगवान की लीला है वरना हम तो खाली काम से बचने का ही सोच के काम को टरका दिये थे ।  

अइसे तो हम शुरू से ही आलसी हैं, सबसे छोटे थे घर में इस लिए कोई भी  काम हमसे नई हो पा  रहा है करके ऊपर धकेल देते थे, दीदी होशियार थी सब चालाकी समझ जाती थी पर वो भी गरिया गरिया के रो गा के काम और ऊपर धकेल देती थी, बहाना बनाने में हम से भी ज्यादा माहिर थी पर रेगुलर प्रेक्टिस के आभाव में फेल हो गयी और हम उससे आगे निकल गए।

जब हास्टल गए तो देखे वहा तो बहुत तगड़ा कंपिटिसन था, एक से एक आलसी थे वहा, हमारे रूम में ही डेविड.. का गज़ब का आलसी था, उसको देख के हम प्रेरित प्रेरित टाइप फील करते थे। हमको तब बहुत बुरा लगता था जब कोई डेविड के आलस की तारीफ हमारे सामने करता था, अरे वो कामे अइसा करता था का बतायें, एक बार तो 10 वी कक्षा में एक्जाम टाइम सूबे सूबे परमार सर आए पुछे डेविड क्या कर रहा है लड़के लोग बताये सर सो रहा है तो वो बोले अरे सोने दो हल्ला मत करो रात भर पढ़ा होगा.. जागेगा तो फिर पढ़ेगा फिर दोपहर में आए तब भी सो रहा था शाम को भी सोते मिला रात में आए तो बोले मार के उठाओ इसको दिन भर सोते रहता है पढ़ता लिखता नही है। रात दिन के मेहनत से डेविड हमसे बहुते आगे निकल गया था..इतना बेजोड़ मेहनत हम किसी को करते नही देखे हैं। अइसे तो कछुवा सबसे बड़ा आलसी होता है, काहे की जीतने टाइम मे दूसरे जानवर 10 गो काम ट्राई करके फेल हो जाते है वो एक ही में धीरे धीरे एकदम स्लोली स्लोली लगा रहता है और वेल फोकस्ड होने के नाम से सफल भी हो जाता है..ये जीत का मंत्र बहुत बड़ी प्रेरणा है  सभी के लिए।

जब कालेज गए तो वहा आलसियो की भारी कमी देखे, लेकिन हमारा दोस्त अविलाश हमेशा हमारे लिए चुनौती पेश करता था और कभी कोई काम करते देख ले तो खूब चिढ़ाता था जैसे हम बेवकूफ बन गए टाइप। सूबे जब अम्मा खाना बनाने के लिए आती थी और दरवाजा खटखटाती थी तो उसको देखे हैं कंबल में मुह छुपा  लेता था जइसे गहरे नींद में है, हम भी थे होशियार ये सब चालाकी पहले से जानते थे और कभी उठे भी नही गेट खोलने के लिए काहे की हम और गहरी नींद में रहते थे, उसके बाद खाना उसी को बनाना पड़ता था काहे की हमारे हाथ का बना खाना उसको अच्छा नही लगता था, हम खाली उबाल देते थे साग तरकारी कह देते थे हेल्थ के लिए यही सही है ज्यादा मसाला वसाला ठीक नही, और हम भी कभी अच्छा बनाने का कोशिश नही किए वरना हमेशा हमी को बनाना पड़ता, वो का हे की हम थोड़ा मोड़ा लिनिएंट हैं न।   

अब ये सोचिए की आलसी लोग आलस करते टाइम करते का होगे, का सोचते होंगे, का चलते रहता होगा उनके दिमाग में, अइसा का है जो उन्हे हर काम को करने से रोकता है.. तो इसका जवाब ये है की हर आलसी की अपनी एक ख्वाबो की दुनिया है, जो एक बगीचे जैसा है जिसमे किसिम किसिम के फूल पत्ती लगे हुये हैं जहाँ वो हमेशा बेफिक्र मदमस्त विचरण करते रहता है, इसी नाम से देखेंगे आलसी लोग स्वभाव में बड़े संतोषी होते हैं, साधु संत के श्रेणी में भी इनको रख सकते है या नशेड़ी भी बोल सकते हैं क्यूकी आलस इनके लिए किसी नारकोटिक्क्स ड्रग्स से कम नही है इनको हमेशा पता होता है की आलस करने से इनको कितना नुकसान होने वाला है और कितना फर्क पड़ेगा, जिसे सहन करने के लिए खुद को बराबर तैयार रखते हैं, जैसे एक स्टूडेंट हमेशा जानता है असाइनमेंट नही लिखने से कितना नंबर कटेगा  या टेस्ट में कितना पढ़े की बिना मेहनत के बस पास हो जाये.. इनको कभी ज्यादा का लालच बिल्कुल नही होता जितने में काम चल जाये उतना ही काफी है ... मै भी भूखा न रहूँ साधू भी भूखा न जाये टाइप...और इस तरह संसार में बिखरी हुयी  नेगेटिव एनर्जि, डिप्रेसन इत्यादि  से  अपने आप को कोसो दूर रखते हुये आलस करते रहते हैं...                   

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