उपरोक्त चित्र को देख के उभरे भावों की अभिव्यक्ति है यह लेख.......
बिबिलिओफ़ाइल
इसका मतलब है बूक लवर यानि किताबों से प्यार करने वाला ये वर्ड हमको खूब अच्छा
लगता है सुनने में ही मजा आ जाता है एकदम प्लीजिंग वर्ड है, इसका मीनिंग
हमारे इंग्लिश वाले दीपक सर 11वी क्लास में बताये थे तबे से हमको याद है। अपने पास
खूब सारा किताब भी जमा के रखे हैं, हाथी के दिखाने वाले दांत
टाइप भले ही धूल कभी कभार झाड़ देते हैं, कोई भी जब हमारे पास
आता है तो उसको दिखाते हैं अपना किताब ताकि हमको वो बिबिलिओफ़ाइल समझे अऊ सामने वाले पे अपना भी थोड़ा इंटेलिजेंट टाइप इम्प्रैशन जमे, थोड़ा भाव मिले तब तो मजा आए, का है की जिसका भाव बढ़ा रहता है
न, राय शुमारी में उसका अपना अलग स्थान होता है।
अइसे
तो 11वी से हमारे विषय से हिन्दी साहित्य
हट गया था जीव विज्ञान अऊ गणित दोनों विषय एक साथ पढ़ने के कारण, लेकिन हर क्लास का
हिन्दी अऊ अंग्रेजी दोनों का स्वाती, पराग, निहारिका, बाल भारती, किशोर
भारती, स्प्लीमेंटरी रीडर ये सब किताब का बहुत सारे पाठ का स्टोरी अऊ कविता आज तक याद
है, जब बाउंडेसन नही रहता है तो आदमी पढ़ाई को एंजॉय करता है
अऊ नंबर के लिए पढ़ने में आदमी ज्यादा पढ़े
न तो पगला जाता है।
हमारी
दीदी जब भी कोई साहित्य मेला मे जाती थी न तो दो तीन किताब जरूर उठा के ले आती थी
अऊ उसके पढ़ने के बाद सब किताब हमारे पास आता था हरिशंकर पारसाई का किताब तो वो ही
ला के दी थी हमको वो इतना मस्त लगा था की अब हम पारसाई जी के किताबों को बूक स्टाल में जरूर खोजते हैं अऊ बिना पढ़ा हुआ रहता है तो
ले आते हैं। हमारे स्कूल के सीनियर जय भैया के पास भी किताब खूब रहता था कालेज के टाइम पे। जब रायपुर जाते थे उनका किताब हम उठा लाते थे, कभी रिटर्न नही किए, सोजे वतन अऊ जयप्रकाश नारायण की बायोग्राफी उन्ही के
पास से लाय थे।
स्कूल
के टाइम पे सेल फोन कल्चर नही था न, तो उस समय हास्टल में कोर्स के इत्तर बूक अऊ
मेगज़ीन का खूब क्रेज था लड़के लोग कामिक्स, सुमन सौरभ, बाल हंस नन्हें सम्राट ये सब
लेके जरूर आते थे, कामिक्स का तो क्रेज अइसा था की उनके हीरो ध्रुव नागराज डोगा ये
सबका फोटो लईका लोग के आर्ट कापी में बनाया हुआ जरुरे रहता था अऊ जो लोग ढंग से बना नही
पाते थे पुराने पुराने किताब से ब्लेड से काट के चिपका लेते थे। हमारा फ्रेंड
विष्णु ये मामले में अजीब अऊ सबसे अलग था ढाई सौ वाला रेडियो कान से लगा के घूमता
रहता था किताब भी अलगे टेस्ट का लाता था एक बार तो मेघदूत लेके आया था कालिदास
वाला, अब सप्लाइ से ज्यादा जब डिमांड रहे तो आदमी ये सब किताब भी पढ़ लेता है
हमको यक्ष का कई गो इन्सट्रकसन जो वो बादल को दिया था न, अभी तक याद है जइसे... हे बादल जब तुम फलाना जगह से
रात के टाइम गुजरोगे तो थोड़ा चमक जाना अऊ जो अभिसारिकाएँ जो अपने प्रियतम से मिलने
जाती रहेंगी उनके लिए रोशनी करना...मोहन भी किताब लाता था वो दो तीन गो बाल
उपन्यास लाया था उसी में एक में जुड़वा भाई बहन सुप्रभा अऊ सुबीर की कहानी थी उसमे
एक एलियन भी आया था दूसरे ग्रह से उसको हरु कहते थे... एगो अरुणाचल के गोम्पा तक
जाने का ट्रेवेलिंग स्टोरी था एक बच्चे का..पारस पत्थर (बाल उपन्यास) हमी लेके आए
थे हास्टल में, पता नही कहा से मिला था लेकिन मस्त था..उसमे
एक उदण्ड लड़के का कहानी था जिसमे उसके मम्मी पापा गुजर गए थे बचपन में अऊ दादा
दादी के लाड़ प्यार में वो बिगड़ गया था फिर एक गुरुजी आते हैं अऊ उसको सुधार के
एकदम बढ़िया आदमी अऊ पेंटर बना देते हैं...
बचपन
में हमारे घर के बगल में डाक घर था तो वहा हमलोग घूमते फिरते घुस जाते थे काहे की
एक थे डब्बा था जिसमे वहा के स्टाफ शुकदेव अऊ हरी पईसा रखते थे, उसमे हमारा बराबर नजर रहता था कई बार तो सुखदेव से हम पईसा भी माँगते थे, दोनों स्टाफ 50 55 साल के रहे
होंगे अऊ हम 5 के, पर हम उनको यार कहके बुलाते थे का है की बच्चे लोग बड़ो का कापी
करते हैं न, रोज जरूर देखते थे किसका किसका चिट्ठी आया है अऊ बगल के गाओं में रहने
वाले तिब्बती लोगो का चिट्ठी तो विदेश से आया रहता था उसमे इंटेरनेशनल टिकट लगा रहता
था उसको उखाड़ लेते थे फिर स्कूल लेजाके दोस्त लोगो के बीच इंप्रेसन झाड़ते थे.. देखो मेरे पास अमेरिका
का जर्मनी का तो लंदन का डाक टिकट है, उस टाइम का यही सब फॅन था..दीदी अऊ भैया तो
एक बार शुकदेव के पईसा वाले डब्बा से 302 रुपये
चुराये थे, दोनों आधा आधा बाटे थे हिसाब से दुनों पढ़ाई में
तेज थे न, लास्ट में पकड़ा भी गए दीदी तो
कबूल ही नहीं रही थी फिर मम्मी बोली पुलिस आई है, खोज रही है चोर को, तब जाके डर से वो
बतायी अऊ 138 रुपिया वापस भी की, बाकी का बिस्कुट खा डाली थी, हम तो हमेशा एक दो एक दो रुपिया
ही चुराते थे या फिर शुकदेव से माँग लेते थे, इसलिए कभी नही पकड़ाये..हम लोगो से
पीछा छुड़ाने के लिए उस टाइम पे, हर सरकारी आफिस के लिए एक
मेगज़ीन आता था समझ झरोखा नाम का अऊ चकमक भी आता था उसमे रंग बिरंगा चित्र भी रहता था, वो ही पकड़ा के शुकदेव भगा देता था कहता था ये देखो ये 3 रुपिया का है
इसको पहले पढ़ के आओ...झरोखा की कहानी एकदम मस्त होती थी..धीरे धीरे हम लोग को इसका
लत लग गया फिर तो रोज जा के शुकदेव से पुछते थे यार झरोखा आया है का...हमारा दोस्त
दिलीप के बड़े पापा अम्बिकापुर के लाइब्रेरी में काम करते थे तो वो भी एक से एक
किताब वहा से लेके आता था अब हम उसके फास्ट फ्रेंड थे तो हमको भी वो सबसे पहले
देता था पढ़ने के लिए...
बचपन
में पढ़ पढ़ के सुनाने का चलन भी खूब था, काहे की कई लोग को पढ़ने से ज्यादा मजा सुनने
में आता था, कई लोग को पढ़ने भी नही आता था, अऊ काम काजी लोग काम करते करते सुन भी लेते
थे, तो मल्टी टास्किंग कांसेप्ट अनजाने में अपलाई हो जाता था। अब हम तीनों भाई बहन का
नंबर स्कूल में ठीकठाक आता था तो हमी लोग दूसरो को मल्टी टास्क करवाते थे, यही बहाने चेक भी हो
जाते थे अऊ तीनों में सबसे अच्छा पढ़ के सुनाने का एकदम सॉलिड कंपिटिसन भी रहता था....अऊ तो अऊ फिलिम के सीन में
भी उस टाइम पे जो सबसे हॉट हेरोइन रहती थी न वो चश्मा लगा के झूला वाला कुर्सी मे लेटे हुये किताब
मेगज़ीन या नावेल पढ़ते रहती थी टीना मुनीम को तो देखबों किए है वो टाइम पे वो ही यूथ
के बीच खूब फ़ेमस थी... अब सभ्यता जो है न वो
ऊपर से नीचे के तरफ समाज में फ्लो होता है तो फिल्मी मेगजीन क्रिकेट मेगज़ीन ये सब मौसी
लोग भी खूब रखती थी अऊ गर्मी छुट्टी के दोपहर
में सब झन बैठ ताश खेलते थे तब एक झन मल्टी टास्क करवाते रहता था...
अब
पारी आता है हमारे टापिक के सबसे दुर्लभ घटना का..पापा खुबे स्ट्रिक्ट थे, रोज सुब्बे
सुब्बे 4 बजे हम तीनों भाई बहन को उठा के पढ़ने बैठा देते थे, ..अरे खूब नींद आता था
वो टाइम पे, पर झपकी आए तो लातों खाते थे, अरे कई बार तो नींद
आने पे साल स्वेटर खोल के बैठा देते थे हम लोग को, खूब ठंढा पड़ता
है न मैनपाठ मे, पानियों डाल देते थे सोते हुये पकड़ा जायें तो..एक
बार पापा अपने स्कूल से एक बोरा किताब लेके आए थे कहानी वाला, उसमे खूब रंगीन रंगीन
चित्र भी बना था तो हम एक दिन दोपहर में वो वाला किताब निकाल के पापा के सामने बईठ
के पढ़ने का नौटंकी करने लगे पापा देखे की उनके स्कूल का किताब छूए हैं तो आव देखे न
ताव दो झापड़ लगा दिये हमको, अऊ किताब को अंदर रख दिये हमारा तो दिमाग घूम गया काहे की
दांव उल्टा पड़ गया था, हम अच्छा बनने के कोशिश में दो झापड़ खा गए थे..लेकिन छोटे बच्चे
को ढिबरी (दिया) छूने से रोकते हैं तो बार बार छूने जाता है वइसे से ही हमारे मन में
क्यूरिओसिटी जग गयी, रोज दिन छुप छुप के किताब निकाल के दूर भाग जाते थे, कभी कोठार में
कभी खेत साइड कभी मैदान साइड अऊ उसको पूरा खतम करके वापस चुपचाप रख देते थे, कभी किसी
को पता न चले टाइप, काहे की अगर दीदी को पता चल जाता न तो रोज ब्लेक मेल करती, हम तीनों
के मुह में एक डायलोग हमेशा रहता था रुक जा पापा को आने दे फिर देखना, फिर बदले में गलती गिनाना पड़ता था की तू बताएगी तो हमारे
पास भी 3 ठे शिकायत रेडी है, तेरे को भी मार पड़ेगा, तब जाके नेगोसीएसन होता था तू ये
मत बताना मै भी ये नहीं बताऊँगा टाइप, स्कूल का मारपीट, बदमाशी, स्कूल में काहे मार खा के
आए है, ये सब घर पे नही बताना रहता था न, अब ऐसे में वो कभी पापा का किताब छूते देख लेती
तब तो अऊ मौका मिल जाता उसको...
😀😁😂
ReplyDelete😅😅😅😅
Deletebibliophile h bhai apna..😄
ReplyDeleteye to bas dikhava hai ...impression jame thoda apna bhi😅😅😅
DeleteMast yaad dila diye humko bhi
ReplyDeletemai to bhool hi nhi pata..😊
Deleteदिखावा की जरूरत नही है बिरजू, तू तो अपना एक्चुअल वाला बिबलियोफाईल है। कीप राइटिंग।👍
ReplyDelete😊😊😊😊😊 thank you..so much mujhe pdhne ke liye..
Deletedada re maja aagaya aaj doga ki yaad aagayi vo super hero kutta mama gaon me doga nam ke ek kutte ne mujhe katne ko daudaya tha or 1st time main ne diwal jump krrke bhagna seekha 😅😅😅
ReplyDeletekon se gaaon me..
DeleteMai bhi ata hu to kitab se dhul hata diya karo bhai anyway your writing skill are very good 👍👍👍
ReplyDeleteaaao aao tumhi se fita katwaate hain...
Delete😀😂 बहुते सुंदर हो बबुआ.. जियो
ReplyDeletethank you bhaiya
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