Monday, December 10, 2018

अकेला गया था मैं


दिवाली की छुट्टियाँ शुरू होने वाली थी शनिवार रविवार तो छुट्टी रहता ही है हम सोचे एक दिन रुक जाते हैं कुछ शॉपिंग वापिंग कर लेंगे उसके बाद रात मे घर निकल लेंगे पर शनिवार को उठते उठते 3 बज गया खूब तेज भूख भी लग रहा था पेट भी दर्द दे रहा था जल्दी से जाके नहा धुला लिए और खाना खाने चले गए खा पी के सीधे लोटस एलेक्टोनिक्स चले गए देखने की  दिवाली ऑफर में का मिल रहा है।  हम हमेशा यही दुकान प्रेफर करते हैं कई बार रेट अंदाजे हैं इन्हे सही रहता है सब जगह से, बहुत दिन से डीएसएलआर लेने का मन था तो जाके देखने लगे 3400 माडल देखने गए थे लेकिन दिखाने वाले के बात से इम्प्रेस होके डी 5600 माडल ले लिए उसके बाद ट्रेवेलिंग बैग देखने गए बैग हाउस एक मस्त सा बैग लिए, आज कल ट्रेवेलर बन गए हैं न ये बैग वइसे ही टाइप का था 10 15 गो पाकिट सबमे अलग अलग चैन लगा हुआ सब समान आ जाए टाइप, फिर खाना खाके घर चले गए अब जल्दी से नया नया समान लिए थे तो मन थोड़ा थोड़ा उचक रहा था दीदी भैया लोग को फोन करके बता दिये भैया तो सुन के हमारे मन से ज्यादा उचकने लगे बोले जल्दी ले के आओ देखते हैं का गज़ब है डीएसएलआर में हम लेकिन तुरत चेता दिये... दूंगा नही मै अपने पास ही रखूँगा...

रात में पैकिंग किए अब कल घर जाना था तो नींद नही आ रहा था अइसे भी रोज 3 3.30 होइए जाता है तो रात में पढ़ने के लिए किताब जरूर रखते हैं या फिर कोई सा मूवी या सिरियल सेलेक्ट कर के रखे रहते हैं अभी हाई स्कूल नाम का सिरियल चल रहा था कोरियन भाषा में है पर सब टाइटल से कम चल जाता है न 15 एपिसोड हो गया था बहुते मस्त है 15 वें एपिसोड के बाद व्हाट्सअप्प खोले एक दो झन जीएन बोल बाल दिये फिर देखे हमारी सहपाठी संध्या 2 मिनट पहले नया स्टेटस लगायी थी तो उसको फोन लगाये 12 15 दिन में लगा लेते हैं, उसको चिढ़ाते भी खूब हैं एक बार तो अपनी सबसे छोटी बहन लोग को उससे मिलाते टाइम हम बताये की ये लड़की 25वें क्लास् में पढ़ती है इसका किताब इतना भारी भारी है की 12 वीं के बाद हाइट कम होते जा रहा है सबसे छोटी वाली तो हमारा बात सही मान ली थी ...  कभी कभी अब घर जाना रहता है तो एक बार तो पुछना ही पड़ता है फार्मेल्टी के लिए  की वो कब जायेगी चले गयी रहती तो कहते बतायी नहीं अइसे ही चले गयी चार पाँच ठे डाइलाग तो पका पकाया रहता है हमारे पास की किस सिचुएसन में का बोलेंगे... वो भी घर कल ही जाने वाली थी हमारा प्लान ट्रेन से कोरबा तक जाने का था व्हा से धरमजयगढ़ फिर वहा तक घर से किसी को बुला लेंगे सोचे थे । पर संध्या बतायी सूबे 6 बजे ट्रेन है अनुपपुर तक फिर वहा से अम्बिकापुर के लिए तुरत मिल जाती है मेमु उसी में चले जाओ अइसे तो हमको अकेले यात्रा करना अच्छा लगता है अकेले में पूरी अपनी चोईस रहती है खुद के ख़याल में खोये रहो या फिर किसी अजनबी से बात करो.. बात चित का कोई दायरा नहीं विषय भी एकदम रेंडम कुछ भी हो सकता है बिना किसी प्लान का बस हमारे पास भी कुछ पाइंट्स होना चाहिए ट्रेन में जो हमसे बात करने वालो में थोड़ी रुचि हमसे बात करने में जगा सके सो तो हाइए है काहे की हम फेक्ट्स जोड़ जाड़ के फेकने में माहिर हैं....तो संध्या के साथ जाने का मन तो नहीं था पर फिर भी हम बोले उसको व्यवहार के नाम से चलो तुम भी साथ में सूरज पुर उतर जाना देखे की सुब्बे सुब्बे उसका ट्रेन पकड़ पाना पोसिबल नहीं है तो और ज़ोर लगाने लगे तुम बोलो तो मै लेने आ जाऊँगा ये टाइप का फिर जीएन बोल के सोने की कोशिश करने लगे




सुब्बे जल्दी उठे सेव रखे थे उसको बैग में डाल के निकल गए पैदल स्टेसन के तरफ 3 केएम है हमारे रूम से 10 मिनट पहले पहुच के बिस्किट नमकीन सब भी रख लिए बैग में फिर एक सीट पकड़ के बईठ गए सामने एक अंकल बैठे थे पेपर पढ़ रहे थे उनसे हम पेपर लेके पढ़ने लगे अब कैसे भी टाइम पास तो करना ही था ट्रेन चलने लगी चना वाला आया उससे चना लिए बढ़िया से नींबू डालने को बोले खा के फिर पेपर पढ़ने लगे सुब्बे थोड़ा थोड़ा ठंढ था सामने वाले अंकल को खूब खासी आ रही थी हमको भी बेकार लग रहा था गुस्सा वाला बेकार सामने सामने खास रहे थे ये नाम से अब बार बार खास रहे थे और हमको दिक्कत हो रहा था तो हम एक चाय वाले को बुलाये और एक चाय अंकल को देने को बोले हम भी एक चाय ले लिए और पीने लगे अब धीरे धीरे हम दोनों के बीच बात चीत का सिलसिला शुरू हो गया पेपर में छपे खबर के बारे में हम दोनों डिस्कस करने लगे बात बात में पता चला की वो रांची में एक कालेज में प्रोफेसर हैं हमारा तो दिमाग चकरा गया काहे की जिसको हम सामान्य सा  देहाती समझ रहे थे वो तो जनरल डिब्बा में ट्रेवल करते हुये एक प्रोफेसर निकला..गज़ब अब हमको उनकी बातों में इंटरेस्ट आने लग गया हम उनसे उन्ही के बारे में पुछने लगे वो अनुपपुर के आगे छोटा सा स्टेसन है हरद वहीं के रहने वाले उनकी पढ़ायी चिरमिरी के लाहीड़ी कालेज में हुआ था वो बता रहे थे उस समय कैसे कैसे दिक्कत होता था ट्रेन से ही चिरमिरी तक जाना आना करते थे सेनिएर लोग बोले थे ट्रेन में पैसा मत देना सो टी टी से शुरू शुरू में बच बच के निकल जाते थे धीरे धीरे तो पहचान इतना हो गया की टी टी को कमाते देखते थे तो उसी के पैसा से नाश्ता करते थे कह कह के की चाचा खिलाइए कुछ न कुछ आज तो आपको कमाते देखे हैं... नौकरी लगने के बाद जब टी टी से मिले थे और उसको खुद के पईसा से मिठाई खिलाये थे तो वो टी टी रोने लग गया था ..उनकी बातों में हल्का हल्का नशा था हम दोनों सुनाने और सुनने में रम गए थे हमको भी मस्त लग रहा था बिसरी हुयी यादों में डबडबाइ आंखों को और रुँधे गले को हम महसूस कर रहे थे वो कह रहे थे की जब ग्रेजुएसन का रिजल्ट लेने गए थे तो प्रिंसिपल सर तीन लोग का रिजल्ट रोक लिए थे उनका उनके दोस्त चपन और एगो लड़की महामाया भट्टाचार्य  ए तीनों डरा गए की का गलती हो गया है जब कालेज का बाबू बोला तुम लोग को प्रिंसिपल सर बुलाये हैं वो रिजल्ट देंगे उस टाइम पे टीचर का डर  और सम्मान दोनों खूब होता था न जब ये लोग गए तो सर खुदे रसगुला खिलाये और बताये तुम तीनों फ़र्स्ट क्लास पास हुये हो और पुछे का करोगे तीनों तो वो सब बोले नौकरी करेंगे तब सर बोले तब तो मै रिजल्ट नहीं दूंगा फिर वो आगे पढ़ने को बोले सागर विश्वविद्यालय में मुखर्जी बाबू को फोन करके तीनों का व्यवस्था भी जमा दिये उस टाइम पे घर से बाहर जाना बहुते बड़ी बात थी जाके एडमिसन कराये फिर वापस आ गए मुखर्जी बाबू फिर तार करके बुलाये तब जाके फिर पढ़ायी शुरू हुआ..वो बताये की रजनीश उस समय सागर में ही साइकोलोजी के प्रोफेसर थे हमारा तो एकसाइटमेंट बढ़ गया काहे की हम रजनीश के बारे में पढ़े है की कैसे वो सिर्फ ढाई साल में अमेरिका में महानगर रजनीश पुरंम बसा दिये थे उनके काफ़िले में हजारो के तादाद लकजरी कार  चलती थी और यहाँ तक की अमेरिका के प्रेसिडेंट को डर हो गया था की ये वहाँ का प्रेसिडेंट न बन जाए नेक्स्ट एलेक्सन में तो हम रजनीश के बारे में पुछने लगे की सागर में वो कैसे थे व्यवहार सब में और कइसे वो ओशो बन गए वो बताये की सब उनको पागल पागल कहते थे क्यूकी उनकी बातें अजीब होती थी अब 80 के दशक में कोई आदमी इतना खुले विचारो का होगा जीतना आज का आदमी पूरी तरह नहीं हुआ है तो विरोध तो होगा ही और लोग पागल ही समझेंगे वास्तव में विचारो के लिए देश काल और परिस्थितियाँ बहुत मायने रखती हैं अब कश्मीर में खिलने वाला फूल कन्याकुमारी मे तो संघर्ष ही करेगा न विचारों के लिए प्लैटफ़ार्म बहुत मैटर करता है अगर सही बात गलत जगह पे बोलेंगे तो आप गलत ही कहलाएंगे...





बात बात में ही हमलोग अनुपपुर पहुच गए वहा पता चला रविवार को गाड़ी अम्बिकापुर के लिए दोपहर में नही रहती है हम फिर से संध्या को फोन लगा के बोले तुम तो ठग दी हमको आज कोई ट्रेन नही है उसको तीन दिन तक अफ़सोस हुआ था पर उसको का पता जितनी अनिश्चितता रहेगी यात्रा में उतना ही यात्रा रोचक होगा ...उसके बाद स्कूल का एक जूनियर विनय गुप्ता भेटा गया उससे आधा घंटा बात किए बहोत दिन बाद मिला था हम दोनों एकके हास्टल में थे वो बिलासपुर जा रहा था..

फिर हम मनेद्रगढ़ तक ट्रेन पकड़ने का सोचे और एक घंटे बाद बैठ गए ट्रेन में बोर्री डाँड में बड़ा भी खाये गरम बड़ा बोल के ठंढा बड़ा खिला दिया वो वेंडर दु गो गाली मने मन बक दिये उसी टाइम फिर मनेंद्रगढ़ पहुच के बस स्टैंड गए वहा हमको एक लड़का दिखा उसको खूब याद करने का कोशिश किए की ये कोन है फिर उसी से जाके पुछे यार मै तेरे को जानता हू क्या हम दोनों मिल के याद करने लगे मै पूछ नवोदय के हो क्या या जी इ सी में पढ़े हो फिर याद आया हम दोनों दो साल पहले पड़ोसी थे फिर दोनों बस में अगल बगल बईठ गए उसको पैसा देके मै बोला जा खाने पीने का समान ले आ जो खाना हो कुरकुरे बिस्किट सब लेके आया फिर हम दोनों पुराने मकान मालिक का मिल के आधा घंटा निंदा किए यासीन नाम था उसका भइयाथान  में घर है अब एकके तरफ के थे इस लिए पहले भी खूब बात होता था उससे वो हमको बताया नेट फ्लिक्स का विडियो कहा से डाउन लोड होता है दो तीन ठे लिंक भी दिया वो बैकुंठ पुर ही उतर गया हमको तो अम्बिकापुर जाना था

धीरे धीरे शाम होने लगी हल्का हल्का ठंढ भी लग रहा था ये जो यात्रा के टाइम शाम को हल्की हल्की सिहरन वाली जो ठंढ है न हमारे लिए गज़ब की फीलिंग है काहे की जब स्कूल टाइम पे हास्टल से छुट्टियों में  घर जाते टाइम अइसा ही ठंढ लगता था घर जाने की खुशी और सिहरन ये हमारे लिए समोसे के साथ चटनी जैसा काम करती है अम्बिकापुर में हमारा भाई कालू इंतज़ार कर रहा था वो बाइक में आया था जैसे पहुचे वो लेने आ गया अंधेरा हो चुका था दोनों निकल लिए हमको भूख लग रही थी दोनों जाके समोसा खाये मिश्रा जी के यहा खरसिया नाका के पास फिर आगे बढ़ गए आगे ठंढ और बढ़ गयी थी पहाड़ी रास्ते का सफर जो था ऊपर से दूर दूर इक्का दुक्का घर में लाइट जो जल रहा था दिख रहा था अब हम देस्टिनेसन पे पहुचने वाले थे ......     

3 comments:

छतीसगढ़ का चित्रकूट है बगीचा |

चित्रकूट एक प्रसिद्ध धार्मिक पर्यटन क्षेत्र है। चित्रकूट का नाम आते ही याद आता है भगवान श्री राम अपने अनुज व पत्नी संग वनवास के कई वर्ष...