Tuesday, May 5, 2020

छतीसगढ़ का चित्रकूट है बगीचा |



चित्रकूट एक प्रसिद्ध धार्मिक पर्यटन क्षेत्र है। चित्रकूट का नाम आते ही याद आता है भगवान श्री राम अपने अनुज व पत्नी संग वनवास के कई वर्ष बिताए थे। गत वर्ष मुझे वहाँ जाने का मौका मिला। गुप्त गोदावरी की गुफाओं में मेरा मन खो सा गया था। राम घाट में रात्रिकालीन जगमगाते नाव में बोटिंग पहाड़ों के बीच माता अनुसूया का मंदिर सब कुछ अद्भुत है।

मेरा मित्र अश्विनी, अम्बिकापुर से 55 किमी दूर जशपुर जिले में एक छोटा सा कस्बा है बगीचा, वहीं पास के गाँव में गुरुजी है। उसके सुनाये हुये रोचक विवरण के कारण मै 3 – 4 बार बगीचा जा चुका हूँ। हर बार एक नई जगह दिखाता है जैसा विवरण वह बताया था गंतव्य हर बार मैंने वैसा ही पाया।

बगीचा जंगलों और पहाड़ों से लगा हुआ कस्बा है यह चित्रकूट और दंडकारण्य के बीच राम वन गमन पथ में आता है। यहाँ कई जगह पे  राम जी के वनवास के समय आने की कथा प्रचलित है, जहां उनके मंदिर भी बने हुये हैं। यहां के देव स्थान उनकी अवस्थिति को देखते हुये हम बगीचा को छत्तीसगढ़ का चित्रकूट भी कह सकते हैं। बगीचा के चारों ओर एक शानदार सा झरना मिल ही जाएगा जिनका विवरण अधोलिखित है :-

राजपुरी जल प्रपात

यह बगीचा से 4 किमी दूर शानदार झरना है।

दनगिरी जल प्रपात

यह बगीचा से 25 किमी दूर है लगभग 2 किमी ट्रेकिंग करके पहुंचा जा सकता है। इसे देखने के बाद चेन्नई एक्सप्रेस फिल्म में दिखाया गया दूध धारा जल प्रपात याद आ जाएगा।



मकर भंजा जलप्रपात

यह छत्तीसगढ़ का सबसे ऊंचा जल प्रपात है। यह बगीचा से 25 किमी दूर है। लगभग 2 किमी ट्रेकिंग करके पहुंचा जा सकता है। झरने के निकट जाने के लिए पहाड़ी रास्ते पर पैदल उतरना पड़ता है जो काफी रोमांचक है। अतः पहले से सावधानी बरतने वाले सामान लेकर ही जाएँ |

कैलाश गुफा

यहाँ संत गहिरा गुरु का आश्रम तथा गुफा में शंकर जी का मंदिर है पास में ही एक शानदार झरना है।

खुड़िया रानी

स्थानीय लोगों की आस्था का प्रतीक माता खुड़िया रानी पहाड़ों के बीच एक गुफा में निवासरत हैं। चारों ओर से पहाड़ से घिरा स्थान बहती हुई नदी, गुफा से निकलता हुआ पानी, सबकुछ शानदार है। इसे देख कर मुझे गुप्त गोदावरी की याद आ गयी थी।

मयाली

बगीचा से 30 किमी दूर यहाँ शिवलिंग के जैसा बड़ा सा पहाड़ है जिसे मद्धेश्वर पर्वत कहते है यहाँ झील में  बोटिंग का लुफ्त भी उठा सकते हैं।



कभी आप बगीचा के आसपास घूमना चाहें तो मेरे माध्यम से मेरे मित्र अश्विनी से संपर्क कर सकते हैं तथा सबसे जरूरी बात कभी घूमने जाएँ तो कृपया कचरा न फैलाएँ।

बृजनंदन सिंह

Monday, April 20, 2020

गुजरा दिन ... गुजरात में


चार धाम और 12 ज्योतिर्लिंग दर्शन की शृंखला को आगे बढ़ाना था सो रामेश्वरम से वापसी के बाद ही गुजरात जाने का प्लान बन गया था | टिकट 2 महीने पहले ही करवा लिया फरवरी का माह घूमने के हिसाब से सही रहेगा ये सोच के न ज्यादा गर्मी न ज्यादा ठंढ |
15 फरवरी को हमारी यात्रा शुरू हुई मेरे साथ मेरा दोस्त अश्विनी था हम दोनों साथ साथ पहले भी जा चुके हैं हमारा लक्ष्य यात्रा के दौरान बेहद कम खर्च वाले ईको टूरिस्म पर रहता है हम अमूमन 15 से 20 किमी तक प्रतिदिन पैदल चलते हैं खाने पीने और रहने की सस्ती से सस्ती जगह ढूंढते हैं यात्रा के सबसे किफ़ायती माध्यम को चुनते हैं |
दिन भर का खाना और फल बैग मे रख लिए थे ताकि खरीदना न पड़े सुबह 9:40 को ट्रेन थी बिलासपुर से अहमदाबाद के लिए पर हमारा प्लान थोड़ा बदल गया और हम लोग वडोदरा मे उतर गए |

पावागढ़

वडोदरा में रेल्वे स्टेसन वेटिंग रूम से ही तैयार हो गए, बगल मे ही बस स्टैंड है वहा से बस पकड़ लिए और हालोल पहुच गए वहा से चम्पानेर दूसरी बस से चम्पानेर से पावागढ़ 2 बसे जाती आती हैं जिनमे किराया नही लगता पर भीड़ बहूत था इसलिए किराए वाली गाड़ी में बैठ के पावागढ़ पहुच गए पहाड़ी के ऊपर माँ काली का मंदिर है लगभग 2000 सीढ़िया हैं रोप वे की भी सुविधा थी पर हम लोग उधर देखे भी नही और 2 किलो संतरा रखा था खाते खाते सीढ़िया चढ़ने लगे  करीब 2 घंटे बाद माता जी का दर्शन किए वहा जैन मंदिर भी था फोटो खिचते खिचाते वापस आ गए |   
द्वारका

हमारी ट्रेन अहमदाबाद से द्वारका के लिए थी जिसे हम रात में वडोदरा से ही पकड़ लिए और सुबह द्वारका पहुच गए वेटिंग रूम में ही तैयार होकर मंदिर पैदल ही चलने लगे मंदिर लगभग 3 किमी दूर था लॉक रूम में समान और मोबाइल जमा करा करके लाइन लगा के दर्शन प्राप्त किए इसी हमारी चार धाम की यात्रा सम्पन्न हुई उसके बाद वही भंडारा में खाना खाये फिर बेट द्वारका जाने के लिए निकल गए |

बेट द्वारका

बेट द्वारका एक द्वीप है ओखा से बोट मिल जाती है जिसने 20 रुपये किराए में हम बेट द्वारका पहुच गए दोपहर के समय मंदिर बंद हो गया था शाम को खुलता पर हम नीम के पेड़ के नीचे बैठ के देव स्थान के ऊर्जा के विषय में चर्चा किए और शांत होकर आधा घंटा बैठे फिर आगे के लिए निकल गए |  

नागेश्वर

नागेश्वर में ज्यतिर्लिंग मंदिर है ओखा से बस से आधे दूर तक चले गए फिर सकड़ा रिक्सा (मोटर साइकल को माडिफ़ाय करा कर बनाया गया ) पकड़ करके नागेश्वर पहुच गए वहा बिलकुल भीड़ नही थी सो आराम से दर्शन किए फिर आधा घंटा शांत हो कर बैठ गए फिर द्वारका के लिए निकल गए |
शाम के 6 बज गए थे जब हम द्वारका पहुचे पर सूरज नहीं डूबा था यहा सूर्योदय और सूर्यास्त बिलासपुर से एक घंटे लेट से होता है हम जल्दी जल्दी कदम बढ़ाते हुये समुद्र किनारे पहुच गए हमे सूर्यास्त देखना था वहा काफी लोग चहल कदमी  रहे थे हम देश के पश्चिमी छोर  में थे हवाएँ चल रही थी सूर्यास्त का दृस्य बेहद शानदार था हम अंधेरा होने तक वही बैठे रहे सब तरफ कृत्रिम प्रकाश जगमगाने लगा था अब हम फिर से भंडारे मे जाकर खाना खाये और रेल्वे स्टेसन के लिए ऑटो पकड़ लिए सोमनाथ के लिए ट्रेन पकड़ना था |

सोमनाथ

रात मे ट्रेन पकड़ लिए इस कारण होटल बुक करना नही पड़ा दिन भर की थकान के कारण नींद जल्दी आ गई नींद खुली तो हम सोमनाथ पहुँच गए थे सुबह के 5 बज रहे थे पर वहाँ अंधेरा था, हम लोग सीधे वेटिंग हाल चले गए वही जा कर नहा धुला कर रेडी हो गए, समान लाक रूम मे रखने चले गए पर हमारे बैग में ताला नही लगा था इस लिए वहाँ रखने नही दिया गया हम लोग समान लेकर मंदिर तक चले गए वहाँ भी समान रखने की निशुल्क सुविधा थी समान मोबाइल सब जमा करके जा कर दर्शन प्राप्त किए मंदिर बहोत बड़ा और शानदार था समुद्र के किनारे होने के कारण एक ओर से मस्त हवा आ रही थी दर्शन के बाद हम लोग शांत  बैठ गए और देव स्थान के ऊर्जा को अनुभव करने की कोशिश करने लगे, उसके बाद बाहर आए और नाश्ता किए फिर आगे के लिए योजना बनाने लगे, सोमनाथ के बस स्टैंड तक पैदल पहुँच गए फिर से तलाला के लिए बस मिल गयी और हम तलाला पहुँच गए |

गिर

तलाला से गिर जाने के लिए बस मिलती है, गिर में शाशन और देवलिया दो जंगल क्षेत्र पर्यटक के लिए है शाशन में जिप्सी किराए पर लेना होता है जिसका किराया 2500 रुपये होता है और देवलिया में बस सुविधा है जिसका प्रति व्यक्ति किराया 150 रुपये है हम लोगो ने बस से घूमना तय किया और देवलिया पहुँच गए वहाँ बसे 3 बजे शुरू होती सो एक घंटा पेड़ की छांव मैं बैठ कर टाइम पास किए नाश्ता भी कर लिए वहाँ इंडियन कॉफी हाऊस के अलावा  महिला स्वयं सहायता समूह की नाश्ते दुकान थी जहां वाजिब दाम में हमें अच्छा नाश्ता मिल गया फिर बस पकड़ लिए जंगल में कम ऊंचाई के पेड़ो की संख्या अधिक थी  घास भी ज्यादा था हिरण चीतल सियार लकड़बग्घा नील गाय सड़क के आर पार दिख रहे थे एक जगह चोटी सी नदी थी उसके किनारे अपने मैडम के साथ बैठे हुये वनराज भी दिख गए वहाँ पर ड्राईवर ने गाड़ी रोक दिया और सभी से शांत रहने को कहा हम सभी वनराज की फोटो खिचने लगे आधे घंटे में हमारा सैर पूरा हुआ अब हम आगे बढ्ने की योजना बनाने लगे, गूगल मैप से सहायता लेते हुये दीव जाने का रास्ता देखने लगे देवलिया मेन रोड में नही था इस लिए बस के लिए हमे बहुत  देर तक इंतज़ार करना पड़ा हम लोग सासन होते हुये तलाला वापस आ गए और यहा से दीव जाने के लिए बस का पता करने लगे, सीधे बस दिउ तक नही थी तो तलाला से उना चले गए और वहा से दीव के लिए बस मिल गयी ये उस दिन की अंतिम बस थी रात में 9 बजे हम लोग दीव पहुँच गए |

दीव   

होटल मेन मार्केट मे ही था ऑनलाइन बुक कर लिए थे बस स्टैंड से लगभग 1 किमी पैदल चलते हुये होटल तक गए रात में खाना खा लिए थकान की वजह से बहुत नींद आ रही थी सुबह जल्दी भी उठना था सो बिना देर किए बिस्तर पकड़ लिए | सुबह नाश्ता करके समुद्र के किनारे चले गए बीच बहोत सुंदर और रेतीला था इक्के दुक्के लोग टहल रहे थे एक दो लोग रेत में सीप इकठ्ठा कर रहे थे सूर्योदय हो चुका था इस लिए समुद्र का पानी चमक रहा था हम लोग रुक नही पाये और डुबकी लगाने के लिए उतर गए काफी देर बाद पानी से बाहर निकले और फिर होटल आ गए तैयार होकर शहर घूमने निकल गए, सबसे पहले दीव का किला देखने गए, किला समुद्र के किनारे ही था धूप तेज़ था पर समंदर से आती हवाएँ धूप और थकान को दूर कर रही थी किले मे एक जगह बेर का पेड़ था हम लोग उसकी छांव में काफी देर बैठे और पेड़ से गिरते बेर खाये फिर पूरा किला घूमते फोटो खिचते खिचाते बाहर आ गए उसके बाद पैदल चलते हुये सेंट पॉल चर्च गए फिर वहा से जालंधर बीच चले गए बीच पथरीला था नहाने के लिए लायक नही था पर फोटो खिचाने के लिए मस्त था बैठने के लिए अच्छी व्यवस्था थी इसलिए घूमने वाले लोगो ने बीच को बियर बोतले और चखने के प्लास्टिक से गंदा किया हुआ था हम लोग छांव में बैठ के आधा घंटा गप्प लड़ाते हुये समंदर का हवा खाये फिर नाइदा गुफा देखने के लिए आगे बढ़ गए, गुफा के पास पहुँचने के बाद पता चला कुछ समय पहले हुये दुर्घटना के कारण पर्यटन के लिए गुफा को बंद कर दिया गया है हम लोग मन मसोस के रह गए बाहर से झांक कर देखने की कोशिश किए पर कुछ दिखा नहीं 2 बज चुका था एक रेस्त्रां में जा कर खाना खाये फिर जूनागढ़ के लिए बस पकड़ लिए |

जूनागढ़

रात को 12:30 बजे हमलोग बस स्टैंड पहुचे वहा से रेल्वे स्टेसन चले गए, रेल्वे स्टेसन में ही रिटायरिंग रूम बुक कर लिए थे वहा साफ सफाई और बाकी सुविधा भी ठीक ठाक थी जूनागढ़ में घूमने की कई जगह थी पर हम लोग यहा गिरनार के पहाड़ियों पे सिर्फ ट्रेकिंग करने का प्लान बनाए थे सुबह जल्दी निकल गए महा शिवरात्रि का दिन था हम लोग आटो से भवनाथ पहुँच गए यहा बहुत बड़ा मेला लगा हुवा था भीड़ बहुत ज्यादा थी भवनाथ में महाशिवरात्री का मेला बहुत फेमस है हम लोग खुद की पीठ थपथपा लिए क्यूंकी अंजाने में ही हम मेला देखने पहुँच गए थे | धीरे धीरे भीड़ को चीरते हुये आगे बढ़ गए गिरनार ट्रेक यही से शुरू होता है 10000 सीढ़ियाँ है पहाड़ियो पर फिर सुंदर वस्तुशील्प लिए जैन मंदिर उसके ऊपर अम्बा जी का मंदिर और अंतिम पड़ाव पर गिरनार मंदिर है नीचे में ही कई लोग श्रद्धालुओ को खाने का समान शर्बत मुफ्त में दे रहे थे इस सुविधा का हम लोग भी लाभ उठाए और पेट भर लिए केला और पानी खरीद कर झोला में रख लिए पुराने ट्रेकिंग के अनुभव के आधार पे और भीड़ में आगे कदम बढ़ाने लगे जैसे जैसे ऊपर जा रहे थे भीड़ थोड़ी कम होती जा रही थी सीढ़ियो के दोनों ओर पेड़ पौधे थे..............................       

Tuesday, January 7, 2020

बिलासपुर...आस पास की तलाश



इस लेख में मैं आपको बिलासपुर के आस पास के घूमने फिरने लायक जगहों के विषय में बताने जा रहा हूं, जहाँ आप पहले भी गए होंगे। आपसे आग्रह करता हूँ कि उन जगहों के बारे में और लोगों को भी बताएं और सबसे जरूरी बात सभी को ईको टूरिस्म अर्थात पर्यावरण को बिना नुकसान पहुंचाए घूमने के लिए प्रेरित करें।


रतनपुर

बिलासपुर से 25 किमी दूर बिलासपुर अम्बिकापुर मार्ग पर स्थित यह कस्बा पहले एक ऐतिहासिक नगर था। कल्चूरी वंशीय राजाओं ने यहां कई सौ वर्षों तक राज किया है यहाँ माँ महामाया का मंदिर बहुत प्रसिद्ध है। इसके अलावा भैरव बाबा, राम टेकरी, लखनी देवी, गिरिजा बंध  आदि बहुत सारे मंदिर यहां हैं। पूरा एक दिन आपको यहा घूमने में लग जाएगा।


खूंटाघाट

रतनपुर से 12 किमी दूर खारंग नदी पर बना ये बांध पहाड़ियों से घिरा हुआ है जिसके कारण साल भर सैलानी यहां आते रहते हैं। यहां एक सरकारी रेस्ट हाउस भी बना हुआ है। इसके अलावा एक बगीचा का भी निर्माण किया गया है ।


चांपी जलाशय

रतनपुर से 15 किमी दूर अमरकंटक मार्ग पर यह जलाशय खुटाघाट का पिछला हिस्सा है। जंगलों के बीच में पहाड़ियों से घिरे होने के कारण यहां का नज़ारा एक दम शानदार है। अंतिम 4 किमी की सड़क कच्ची है बरसात में दिक्कत हो सकती है ।


भैसाझार बैराज

अरपा भैंसाझार परियोजना बिलासपुर से कोई तीस किमी दूर रतनपुर-कोटा सड़क मार्ग पर है। पानी में आधे डूबे हुये पेड़ आपका मन मोह लेंगे।


चैतुरगढ़

बिलासपुर से लगभग 90 किमी दूर बिलासपुर अम्बिकापुर मार्ग पर पाली से रास्ता कटा हुआ है। पहाडों के ऊपर देश का सबसे दुर्गम किला स्थित है। किले से 2 किमी दूर शंकर गुफा एक बेहद ही शानदार जगह है। पहाड़ियों पर पक्की सड़क बनी हुयी है पर यात्रा संयमित गति से करें। 


कोटा डैम

बिलासपुर से लगभग 30 किमी दूर कोटा में डैम है जो आकर्षण का केंद्र है।


मद्कु द्वीप

बिलासपुर से लगभग 40 किमी दूर शिवनाथ नदी के धारा के बीच प्राकृतिक सौंदर्य लिए हुये ये द्वीप एक ऐतिहासिक स्थल है। यहाँ उत्खनन से प्राप्त प्राचीन मदिरों के अवशेष व मूर्तियाँ हैं।


ताला गाँव

बिलासपुर से लगभग 30 किमी दूर रायपुर रोड पर ताला अमेरी कापा गांव के पास मनियारी नदी के तट पर स्थित है। यह प्राचीन/ऐतिहासिक नगर था। देवरानी-जेठानी मंदिर और रुद्र शिव प्रतिमा सबसे ज्यादा मशहूर है।


मल्हार

बिलासपुर से 25 किमी दूर मल्हार एक प्राचीन/ऐतिहासिक नगर था। माता डिडनेश्वरी देवी का मंदिर पातालेश्वर महादेव का मंदिर, भीम कीचक मंदिर  प्राचीन मूर्तियाँ आकर्षण का केंद्र है।


कोटमी सोनार

बिलासपुर से लगभग 22 किमी दूर कोटमी सोनार में क्रोकोडाइल पार्क है, जहाँ आप मगरमच्छ देख सकते हैं। यहाँ लोकल ट्रेन से भी जा सकते हैं। 


लुतरा शरीफ

बाबा सैय्यद इंसान अली शाह की दरगाह के रूप में प्रसिद्ध “लुतरा शरीफ” बिलासपुर से लगभग 15 किमी दूर सीपत रोड पर स्थित है। ऐसी मान्यता है कि बाबा के मजार में मत्था टेकने वालों की मन्नत अवश्य पूरी होती है।


बृजनंदन सिंह ।

Tuesday, December 31, 2019

जटाशंकर की पद यात्रा




केदारनाथ से वापस आने के बाद सौरभ को जब ट्रेकिंग का संस्मरण सुनाया तब वो बोला एक बहोत मस्त जगह है मनेन्द्रगढ़ के पास, रुक जा टाइम मिले तो कभी तेरे को लेके जाऊँगा बस दिमाग मे ये बात रह गयी देखें तो क्या है जटाशंकर में। एक दिन भैयाथान निवासी मित्र तरुण फोन किया..आओ यार मिलने इधर भी कहीं घुमतें हैं तब मै  उससे बोला भाई कहीं ट्रेकिंग करते हैं तब वो बताया आ जाओ जटाशंकर चलेंगे, जटाशंकर उसके पैतृक गाँव कछौड़ से लगभग 20 किमी दूर है, मै और सौरभ दोनों योजना बना कर  निकल गए।




दुर्गम वनक्षेत्र पार कर पहाड़ी में बनी गुफा के अंदर गुफा में स्थित है जटाशंकर मंदिर, जो  मनेन्द्रगढ़ से 35 किमी दूर है 4 चक्का वाहन से लगभग 32 किमी दूर तक जा सकते हैं, वहा से फिर पैदल सीढ़ी दार मार्ग से जाना पड़ता है मनेन्द्रगढ़ विकासखंड के अंतर्गत आने वाले ग्राम पंचायत बिहारपुर के बैरागी से लगभग १२ किमी दूर घनघोर जंगल से आगे पहाड़ी के नीचे स्थित प्राचीन शिवमंदिर जटाशंकर में, जहां दुर्गम वन क्षेत्र को पार कर पहाड़ी के अंदर गुफा में  लगभग 52 फिट से ज्यादा घुटनों और कोहनियों के बल ही चलकर अंदर पहुंचा जा सकता है।




क्षेत्र में स्थित इस प्राचीन  और दुर्गम पहुंचविहीन क्षेत्र में शिव मंदिर को लेकर काफी मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। यही वजह  है कि सावन  के महीने में यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। न केवल कोरिया जिले से वरन् आसपास के जिलों  से  श्रद्धालु  अपने परिवार के साथ यहां पहुंचते हैं और भगवान शिव की पूजा अर्चना करते हैं। ट्रेकिंग वाले रास्ते में मंदिर  जाने के लिये लगभग १२ किमी पैदल जाने के बाद एक विशालकाय पहाड़ी मिलती है जिसे देखकर ऐसा महसूस  होता है कि कोई सर्प फन फैलाकर बैठा हो। इसी पहाड़ी के नीचे स्थित है प्राचीन शिव मंदिर। इस प्राचीन शिव मंदिर को  क्षेत्र के श्रद्धालु जटाशंकर के नाम से पुकारते हैं। इस मंदिर का नाम जटाशंकर पड़ने के पीछे शिव की प्राचीन शिवलिंग में जटाओं जैसी आकृति साफ दिखाई पड़ती है गुफा के अंदर गुफा वाले इस मंदिर से कई मान्यताएं जुड़ी हुई  हैं


इस संबंध में स्थानीय लोगो के अनुसार जटाशंकर का इतिहास काफी पुराना है। जब भगवान शिव भस्मासुर के डर से  पहाड़ियों के अंदर जाकर छुप गये थे तब उनकी जटाओं के अवशेष पत्थरों में बन गये जो आज भी देखे जा सकते  हैं। वहीं इस मंदिर में प्रगट हुई भगवान शिव की मूर्ति के ऊपर कुदरती रूप से जल की बूंद अपने आप गिरती है।




मै और सौरभ सुरजपुर पहुच गए वहाँ स्कूल के कई मित्रो से मुलाक़ात हुई रात्री विश्राम मित्र विश्वनाथ के घर पर हुआ   फिर अगले दिन सुबह तरुण मै और सौरभ तरुण के गाड़ी में निकल गए। सुबह बहोत कुहरा छाया था फिर सूरज निकला  तो मौसम बहोत शानदार हो गया । रास्ते में बरबसपुर के एक छोटे से होटल का नाश्ता और मिठाइयाँ फेमस है वही रुक कर नाश्ता किए और आगे रास्ते भर रुक रुक के फोटो खिचते खिचाते आगे बढ़ गए। सुबह 9 बजे लगभग हम तरुण के गाँव पहुच गए ये एकदम 80 के दशक के फिल्मो में दिखने वाला गाँव था मकान पक्के के बने हुये थे करीब 30-40 घर होंगे जंगल के बीच पहाड़ के नीचे में बसाहट बरगद के पुराने पेड़ जिसके लटकते जड़ो में झूला झूलने का आनंद लिया पहाड़ के पास पानी का बहता हुआ स्रोत था जहाँ जाकर स्नान किया.. वाह गाँव का ताजा ताजा पानी मन एकदम तरोताजा हो गया पानी एक तालाब नुमा जगह पर इकट्ठा हो रहा था वहाँ कमल खिले हुये थे आधा घंटा मस्ती करते हुये तरुण के घर गए खाना पकड़ लिए और चाय पी के जटाशंकर के लिए निकल गए ।



ट्रेकिंग वाला रास्ता पहाड़ियों से होकर जाता था तरुण बोला इससे जायेंगे तो शाम को पहुचेंगे आज ही वापस आना है तो गाड़ी से चलो बस 2 किमी पैदल चलना पड़ेगा, समय को देखते हुये कार मे ही निकल गए दोनों ओर घने भयावह जंगल, ताजी हवा हल्की सिहरन रास्ते पे छोटे छोटे नदी नाले इक्का दुक्का मकान पार करते हुये, एक छोटा सा  मंदिर दिखायी दिया उसके आगे रास्ता नही था वही गाड़ी पार्क किए और पद यात्रा पे निकल गए। गुफा पहाड़ियों पे नीचे था सीढ़ियाँ पक्के की बनी हुई थी, वापस आते हुये लोगो के चेहरे पे जो थकान था वो हमे हतोत्साहित कर रहा था पर जंगल के बीच का शानदार नज़ारा एक अच्छा सा केमरा वाला मोबाइल  हम सबको आगे खिच रहा था, रास्ते भर हम लोग स्कूल के दिनो की बातें याद कर रहे थे और ठहाके लगा रहे थे एक दूसरे को कैसे तंग करते थे, जो काम करने की मनाही थी उन कामो में हम कितने माहिर थे और कब कब होशियारी से मार खाने से बच गए या किसी और को मार खिला दिये, यादों में से एक से एक शरारतें निकल कर गुदगुदा रही थी। हम लोग गुफा के पास पहुच गए चारो ओर पहाड़ियाँ, जंगल, बड़े से चट्टान के अंदर गुफा.. वहाँ पर मीठा पानी का स्रोत था जिससे पी कर सबने थकान मिटाया। 




अब बारी थी गुफा के अंदर जा कर प्रभु के दर्शन की, गुफा बेहद ही सकरा था घुटनो के बल या बैठ कर सरक सरक कर  ही आगे बढ़ सकते थे अंदर काफी अंधेरा था अंदर से पानी भी निकल रहा था और साँप के होने का भी ख़तरा था धीरे धीरे मोबाइल के प्रकाश में, डर और अंधेरा दोनों से लड़ते हुये आगे बढ़ रहे थे। अंदर काफी गर्मी थी और साँस लेने मे तकलीफ़ हो रही थी 52 फिट की दूरी भी बहोत ज्यादा लग रही थी मै मोबाइल के प्रकाश के साथ साथ वीडियो रेकोर्डिंग भी ऑन कर दिया था अंदर  आने जाने का पूरा सीन रिकार्ड हो गया, अंदर जा कर दर्शन प्राप्त किए और जल्दी जल्दी वापस भी निकल गए डर था प्रभु के गले मे लिपटा सेवक सामने न आ जाए। बाहर आ कर थोड़ी देर बैठ कर प्राकृतिक सुषमा को निहारते हुये एक दो गीत कविता को गुनगुनाने लगे फिर वापस आने के लिए निकल गए चढ़ाई थोड़ी मुश्किल वाली थी पर पक्की सीढ़ियो के कारण तकलीफ़ थोड़ी कम हो रही थी धीरे धीरे रुकते रुकते हम अपनी गाड़ी तक आ गए और फिर वहाँ खाना खाये उसके बाद मनेंद्रगढ़  के लिए निकल गए वही से हमे बिलासपुर के लिए ट्रेन पकड़ना था ।


सुझाव : ट्रेकिंग का कम अनुभव वालो के लिए भी ट्रेकिंग करने के लिए ये बहुत ही शानदार जगह है। टार्च और खाने का समान ले कर ही जायें, जिन्हे साँस संबंधित कोई तकलीफ़ हो वो गुफा मे प्रवेश न करें। बिलासपुर से चिरमिरी जाने वाली पेसेंजेर ट्रेन से  मनेंद्रगढ़ तक जा सकते हैं वहा से गाड़ी बुक कर लें अगर दुर्ग अम्बिकापुर एक्सप्रेस से यात्रा करते हैं तो उदल कछार स्टेसन पर उतरें।

बृजनंदन सिंह।
            

Monday, January 7, 2019

आलस ज्ञान


आज करे सो काल कर काल करे सो परसो हड़बड़ हड़बड़ काहे करत जीना है सौ बरसो।।

ये वाला लाइन झा सर माइंड में बचपने में अइसा फ़ीड किए हैं कि का बताये आलस करना हॉबी बन गया है। बिस्तर में लेट जाओ अऊ  दीवार को देखते रहो, सोचते रहो सोचते रहो कि अइसा  का करू की कुछों काम न करना पड़े,  कोई भी काम न करने के लिए परफेक्ट बहाना बनाना, अरे बड़ी मेहनत लगता है ये सब में। हमारे पास कोई कुछ कामं लेके तो आ जाये, पहले तो हम सामने वाले को कंविन्स करते हैं, ये जो काम जो आप बोल रहें है न वो सही नही है इस काम के जगह दूसरा काम, जो हमसे नही किसी और से होगा, वही सबसे सही काम है घर वाले तो अब कुछों नही कहते हैं सब जान गए हैं जीतने देर में हम काम करने को राजी होंगे उतने देर में वे खुदे कर लेंगे। ये बहाना बनाने वाला टेकनीक कई बार अइसा काम किया है की हमारे सुझाव को अमल लाने वाले हमको बहुत मानते हैं वो सोचते हैं की हम उनको सही रास्ता दिखाये  पर हम जानते हैं, ये सब भगवान की लीला है वरना हम तो खाली काम से बचने का ही सोच के काम को टरका दिये थे ।  

अइसे तो हम शुरू से ही आलसी हैं, सबसे छोटे थे घर में इस लिए कोई भी  काम हमसे नई हो पा  रहा है करके ऊपर धकेल देते थे, दीदी होशियार थी सब चालाकी समझ जाती थी पर वो भी गरिया गरिया के रो गा के काम और ऊपर धकेल देती थी, बहाना बनाने में हम से भी ज्यादा माहिर थी पर रेगुलर प्रेक्टिस के आभाव में फेल हो गयी और हम उससे आगे निकल गए।

जब हास्टल गए तो देखे वहा तो बहुत तगड़ा कंपिटिसन था, एक से एक आलसी थे वहा, हमारे रूम में ही डेविड.. का गज़ब का आलसी था, उसको देख के हम प्रेरित प्रेरित टाइप फील करते थे। हमको तब बहुत बुरा लगता था जब कोई डेविड के आलस की तारीफ हमारे सामने करता था, अरे वो कामे अइसा करता था का बतायें, एक बार तो 10 वी कक्षा में एक्जाम टाइम सूबे सूबे परमार सर आए पुछे डेविड क्या कर रहा है लड़के लोग बताये सर सो रहा है तो वो बोले अरे सोने दो हल्ला मत करो रात भर पढ़ा होगा.. जागेगा तो फिर पढ़ेगा फिर दोपहर में आए तब भी सो रहा था शाम को भी सोते मिला रात में आए तो बोले मार के उठाओ इसको दिन भर सोते रहता है पढ़ता लिखता नही है। रात दिन के मेहनत से डेविड हमसे बहुते आगे निकल गया था..इतना बेजोड़ मेहनत हम किसी को करते नही देखे हैं। अइसे तो कछुवा सबसे बड़ा आलसी होता है, काहे की जीतने टाइम मे दूसरे जानवर 10 गो काम ट्राई करके फेल हो जाते है वो एक ही में धीरे धीरे एकदम स्लोली स्लोली लगा रहता है और वेल फोकस्ड होने के नाम से सफल भी हो जाता है..ये जीत का मंत्र बहुत बड़ी प्रेरणा है  सभी के लिए।

जब कालेज गए तो वहा आलसियो की भारी कमी देखे, लेकिन हमारा दोस्त अविलाश हमेशा हमारे लिए चुनौती पेश करता था और कभी कोई काम करते देख ले तो खूब चिढ़ाता था जैसे हम बेवकूफ बन गए टाइप। सूबे जब अम्मा खाना बनाने के लिए आती थी और दरवाजा खटखटाती थी तो उसको देखे हैं कंबल में मुह छुपा  लेता था जइसे गहरे नींद में है, हम भी थे होशियार ये सब चालाकी पहले से जानते थे और कभी उठे भी नही गेट खोलने के लिए काहे की हम और गहरी नींद में रहते थे, उसके बाद खाना उसी को बनाना पड़ता था काहे की हमारे हाथ का बना खाना उसको अच्छा नही लगता था, हम खाली उबाल देते थे साग तरकारी कह देते थे हेल्थ के लिए यही सही है ज्यादा मसाला वसाला ठीक नही, और हम भी कभी अच्छा बनाने का कोशिश नही किए वरना हमेशा हमी को बनाना पड़ता, वो का हे की हम थोड़ा मोड़ा लिनिएंट हैं न।   

अब ये सोचिए की आलसी लोग आलस करते टाइम करते का होगे, का सोचते होंगे, का चलते रहता होगा उनके दिमाग में, अइसा का है जो उन्हे हर काम को करने से रोकता है.. तो इसका जवाब ये है की हर आलसी की अपनी एक ख्वाबो की दुनिया है, जो एक बगीचे जैसा है जिसमे किसिम किसिम के फूल पत्ती लगे हुये हैं जहाँ वो हमेशा बेफिक्र मदमस्त विचरण करते रहता है, इसी नाम से देखेंगे आलसी लोग स्वभाव में बड़े संतोषी होते हैं, साधु संत के श्रेणी में भी इनको रख सकते है या नशेड़ी भी बोल सकते हैं क्यूकी आलस इनके लिए किसी नारकोटिक्क्स ड्रग्स से कम नही है इनको हमेशा पता होता है की आलस करने से इनको कितना नुकसान होने वाला है और कितना फर्क पड़ेगा, जिसे सहन करने के लिए खुद को बराबर तैयार रखते हैं, जैसे एक स्टूडेंट हमेशा जानता है असाइनमेंट नही लिखने से कितना नंबर कटेगा  या टेस्ट में कितना पढ़े की बिना मेहनत के बस पास हो जाये.. इनको कभी ज्यादा का लालच बिल्कुल नही होता जितने में काम चल जाये उतना ही काफी है ... मै भी भूखा न रहूँ साधू भी भूखा न जाये टाइप...और इस तरह संसार में बिखरी हुयी  नेगेटिव एनर्जि, डिप्रेसन इत्यादि  से  अपने आप को कोसो दूर रखते हुये आलस करते रहते हैं...                   

Wednesday, December 12, 2018

हाउ आइ बिकम अ बिबिलिओफ़ाइल




   उपरोक्त चित्र को देख के उभरे भावों  की अभिव्यक्ति है यह लेख....... 


बिबिलिओफ़ाइल इसका मतलब है बूक लवर यानि किताबों से प्यार करने वाला ये वर्ड हमको खूब अच्छा लगता है सुनने में ही मजा आ जाता है एकदम प्लीजिंग वर्ड  है, इसका मीनिंग हमारे इंग्लिश वाले दीपक सर 11वी क्लास में बताये थे तबे से हमको याद है। अपने पास खूब सारा किताब भी जमा के रखे हैं, हाथी के दिखाने वाले दांत टाइप भले ही धूल कभी कभार झाड़ देते हैं, कोई भी जब हमारे पास आता है तो उसको दिखाते हैं अपना किताब ताकि हमको वो बिबिलिओफ़ाइल समझे अऊ सामने वाले पे  अपना भी थोड़ा इंटेलिजेंट टाइप इम्प्रैशन जमे, थोड़ा भाव मिले तब तो मजा आए, का है की जिसका भाव बढ़ा रहता है न, राय शुमारी में उसका अपना अलग स्थान होता है।

अइसे तो 11वी से हमारे विषय से  हिन्दी साहित्य हट गया था जीव विज्ञान अऊ गणित दोनों विषय एक साथ पढ़ने के कारण, लेकिन हर क्लास का हिन्दी अऊ अंग्रेजी दोनों का स्वाती, पराग, निहारिका, बाल भारती, किशोर भारती, स्प्लीमेंटरी रीडर ये सब किताब  का बहुत सारे पाठ का स्टोरी अऊ कविता आज तक याद है, जब बाउंडेसन नही रहता है तो आदमी पढ़ाई को एंजॉय करता है अऊ  नंबर के लिए पढ़ने में आदमी ज्यादा पढ़े न तो पगला जाता है।

हमारी दीदी जब भी कोई साहित्य मेला मे जाती थी न तो दो तीन किताब जरूर उठा के ले आती थी अऊ उसके पढ़ने के बाद सब किताब हमारे पास आता था हरिशंकर पारसाई का किताब तो वो ही ला के दी थी हमको वो इतना मस्त लगा था की अब हम पारसाई जी के  किताबों को बूक स्टाल  में जरूर खोजते हैं अऊ बिना पढ़ा हुआ रहता है तो ले आते हैं। हमारे स्कूल के सीनियर जय भैया के पास भी किताब खूब रहता था कालेज के टाइम पे। जब रायपुर जाते थे उनका किताब हम उठा लाते थे, कभी रिटर्न नही किए, सोजे वतन अऊ जयप्रकाश नारायण की बायोग्राफी उन्ही के पास से लाय थे।

स्कूल के टाइम पे सेल फोन कल्चर नही था न, तो उस समय हास्टल में कोर्स के इत्तर बूक अऊ मेगज़ीन का खूब क्रेज था लड़के लोग कामिक्स, सुमन सौरभ, बाल हंस नन्हें सम्राट ये सब लेके जरूर आते थे, कामिक्स का तो क्रेज अइसा था की उनके हीरो ध्रुव नागराज डोगा ये सबका फोटो लईका लोग के आर्ट कापी में बनाया हुआ जरुरे रहता था अऊ जो लोग ढंग से बना नही पाते थे पुराने पुराने किताब से ब्लेड से काट के चिपका लेते थे। हमारा फ्रेंड विष्णु ये मामले में अजीब अऊ सबसे अलग था ढाई सौ वाला रेडियो कान से लगा के घूमता रहता था किताब भी अलगे टेस्ट का लाता था एक बार तो मेघदूत लेके आया था कालिदास वाला, अब सप्लाइ से ज्यादा जब डिमांड रहे तो आदमी ये सब किताब भी पढ़ लेता है हमको यक्ष का कई गो इन्सट्रकसन जो वो बादल को दिया था न,  अभी तक याद है जइसे... हे बादल जब तुम फलाना जगह से रात के टाइम गुजरोगे तो थोड़ा चमक जाना अऊ जो अभिसारिकाएँ जो अपने प्रियतम से मिलने जाती रहेंगी उनके लिए रोशनी करना...मोहन भी किताब लाता था वो दो तीन गो बाल उपन्यास लाया था उसी में एक में जुड़वा भाई बहन सुप्रभा अऊ सुबीर की कहानी थी उसमे एक एलियन भी आया था दूसरे ग्रह से उसको हरु कहते थे... एगो अरुणाचल के गोम्पा तक जाने का ट्रेवेलिंग स्टोरी था एक बच्चे का..पारस पत्थर (बाल उपन्यास) हमी लेके आए थे हास्टल में, पता नही कहा से मिला था लेकिन मस्त था..उसमे एक उदण्ड लड़के का कहानी था जिसमे उसके मम्मी पापा गुजर गए थे बचपन में अऊ दादा दादी के लाड़ प्यार में वो बिगड़ गया था फिर एक गुरुजी आते हैं अऊ उसको सुधार के एकदम बढ़िया आदमी अऊ पेंटर बना देते हैं...




बचपन में हमारे घर के बगल में डाक घर था तो वहा हमलोग घूमते फिरते घुस जाते थे काहे की एक थे डब्बा था जिसमे वहा के स्टाफ शुकदेव अऊ हरी पईसा रखते थे, उसमे हमारा बराबर नजर रहता था कई बार तो सुखदेव से हम पईसा भी माँगते थे, दोनों स्टाफ 50 55  साल के रहे होंगे अऊ हम 5 के, पर हम उनको यार कहके बुलाते थे का है की बच्चे लोग बड़ो का कापी करते हैं न, रोज जरूर देखते थे किसका किसका चिट्ठी आया है अऊ बगल के गाओं में रहने वाले तिब्बती लोगो का चिट्ठी तो विदेश से आया रहता था उसमे इंटेरनेशनल टिकट लगा रहता था उसको उखाड़ लेते थे फिर स्कूल लेजाके दोस्त लोगो के बीच इंप्रेसन झाड़ते थे.. देखो मेरे पास अमेरिका का जर्मनी का तो लंदन का डाक टिकट है, उस टाइम का यही सब फॅन था..दीदी अऊ भैया तो एक बार शुकदेव के पईसा वाले डब्बा से 302  रुपये चुराये थे, दोनों आधा आधा बाटे थे हिसाब से दुनों पढ़ाई में तेज थे नलास्ट में पकड़ा भी गए दीदी तो कबूल ही नहीं रही थी फिर मम्मी बोली पुलिस आई है, खोज रही है चोर को, तब जाके डर से वो बतायी अऊ 138 रुपिया वापस भी की, बाकी का बिस्कुट खा डाली थी, हम तो  हमेशा एक दो एक दो रुपिया ही चुराते थे या फिर शुकदेव से माँग लेते थे, इसलिए कभी नही पकड़ाये..हम लोगो से पीछा छुड़ाने के लिए उस टाइम पे, हर सरकारी आफिस के लिए एक मेगज़ीन आता था समझ झरोखा नाम का अऊ चकमक भी आता था उसमे रंग बिरंगा चित्र भी रहता था, वो ही पकड़ा के शुकदेव भगा देता था कहता था ये देखो ये 3 रुपिया का है इसको पहले पढ़ के आओ...झरोखा की कहानी एकदम मस्त होती थी..धीरे धीरे हम लोग को इसका लत लग गया फिर तो रोज जा के शुकदेव से पुछते थे यार झरोखा आया है का...हमारा दोस्त दिलीप के बड़े पापा अम्बिकापुर के लाइब्रेरी में काम करते थे तो वो भी एक से एक किताब वहा से लेके आता था अब हम उसके फास्ट फ्रेंड थे तो हमको भी वो सबसे पहले देता था पढ़ने के लिए...

बचपन में पढ़ पढ़ के सुनाने का चलन भी खूब था, काहे की कई लोग को पढ़ने से ज्यादा मजा सुनने में आता था, कई लोग को पढ़ने भी नही आता था, अऊ काम काजी लोग काम करते करते सुन भी लेते थे, तो मल्टी टास्किंग कांसेप्ट अनजाने में अपलाई हो जाता था। अब हम तीनों भाई बहन का नंबर स्कूल में  ठीकठाक आता था तो हमी लोग दूसरो को मल्टी टास्क करवाते थे, यही बहाने चेक भी हो जाते थे अऊ तीनों में सबसे अच्छा पढ़ के सुनाने का एकदम सॉलिड  कंपिटिसन भी रहता था....अऊ तो अऊ फिलिम के सीन में भी उस टाइम पे जो सबसे हॉट हेरोइन रहती थी न वो  चश्मा लगा के झूला वाला कुर्सी मे लेटे हुये किताब मेगज़ीन या नावेल पढ़ते रहती थी टीना मुनीम को तो देखबों किए है वो टाइम पे वो ही यूथ के बीच खूब फ़ेमस थी... अब सभ्यता जो है न वो ऊपर से नीचे के तरफ समाज में फ्लो होता है तो फिल्मी मेगजीन क्रिकेट मेगज़ीन ये सब मौसी लोग भी खूब रखती थी  अऊ गर्मी छुट्टी के दोपहर में सब झन बैठ ताश खेलते थे तब एक झन मल्टी टास्क करवाते रहता था...


अब पारी आता है हमारे टापिक के सबसे दुर्लभ घटना का..पापा खुबे स्ट्रिक्ट थे, रोज सुब्बे सुब्बे 4 बजे हम तीनों भाई बहन को उठा के पढ़ने बैठा देते थे, ..अरे खूब नींद आता था वो टाइम पे, पर झपकी आए तो लातों खाते थे, अरे कई बार तो नींद आने पे साल स्वेटर खोल के बैठा देते थे हम लोग को, खूब ठंढा पड़ता है न मैनपाठ मे, पानियों डाल देते थे सोते हुये पकड़ा जायें तो..एक बार पापा अपने स्कूल से एक बोरा किताब लेके आए थे कहानी वाला, उसमे खूब रंगीन रंगीन चित्र भी बना था तो हम एक दिन दोपहर में वो वाला किताब निकाल के पापा के सामने बईठ के पढ़ने का नौटंकी करने लगे पापा देखे की उनके स्कूल का किताब छूए हैं तो आव देखे न ताव दो झापड़ लगा दिये हमको, अऊ किताब को अंदर रख दिये हमारा तो दिमाग घूम गया काहे की दांव उल्टा पड़ गया था, हम अच्छा बनने के कोशिश में दो झापड़ खा गए थे..लेकिन छोटे बच्चे को ढिबरी (दिया) छूने से रोकते हैं तो बार बार छूने जाता है वइसे से ही हमारे मन में क्यूरिओसिटी जग गयी, रोज दिन छुप छुप के किताब निकाल के दूर भाग जाते थे, कभी कोठार में कभी खेत साइड कभी मैदान साइड अऊ उसको पूरा खतम करके वापस चुपचाप रख देते थे, कभी किसी को पता न चले टाइप, काहे की अगर दीदी को पता चल जाता न तो रोज ब्लेक मेल करती, हम तीनों के मुह में एक डायलोग हमेशा रहता था रुक जा पापा को आने दे फिर देखना, फिर बदले में गलती गिनाना पड़ता था की तू बताएगी तो हमारे पास भी 3 ठे शिकायत रेडी है, तेरे को भी मार पड़ेगा, तब जाके नेगोसीएसन होता था तू ये मत बताना मै भी ये नहीं बताऊँगा टाइप, स्कूल का मारपीट, बदमाशी, स्कूल में काहे मार खा के आए है, ये सब घर पे नही बताना रहता था न, अब ऐसे में वो कभी पापा का किताब छूते देख लेती तब तो अऊ मौका मिल जाता उसको...                  
                 
                         



Monday, December 10, 2018

अकेला गया था मैं


दिवाली की छुट्टियाँ शुरू होने वाली थी शनिवार रविवार तो छुट्टी रहता ही है हम सोचे एक दिन रुक जाते हैं कुछ शॉपिंग वापिंग कर लेंगे उसके बाद रात मे घर निकल लेंगे पर शनिवार को उठते उठते 3 बज गया खूब तेज भूख भी लग रहा था पेट भी दर्द दे रहा था जल्दी से जाके नहा धुला लिए और खाना खाने चले गए खा पी के सीधे लोटस एलेक्टोनिक्स चले गए देखने की  दिवाली ऑफर में का मिल रहा है।  हम हमेशा यही दुकान प्रेफर करते हैं कई बार रेट अंदाजे हैं इन्हे सही रहता है सब जगह से, बहुत दिन से डीएसएलआर लेने का मन था तो जाके देखने लगे 3400 माडल देखने गए थे लेकिन दिखाने वाले के बात से इम्प्रेस होके डी 5600 माडल ले लिए उसके बाद ट्रेवेलिंग बैग देखने गए बैग हाउस एक मस्त सा बैग लिए, आज कल ट्रेवेलर बन गए हैं न ये बैग वइसे ही टाइप का था 10 15 गो पाकिट सबमे अलग अलग चैन लगा हुआ सब समान आ जाए टाइप, फिर खाना खाके घर चले गए अब जल्दी से नया नया समान लिए थे तो मन थोड़ा थोड़ा उचक रहा था दीदी भैया लोग को फोन करके बता दिये भैया तो सुन के हमारे मन से ज्यादा उचकने लगे बोले जल्दी ले के आओ देखते हैं का गज़ब है डीएसएलआर में हम लेकिन तुरत चेता दिये... दूंगा नही मै अपने पास ही रखूँगा...

रात में पैकिंग किए अब कल घर जाना था तो नींद नही आ रहा था अइसे भी रोज 3 3.30 होइए जाता है तो रात में पढ़ने के लिए किताब जरूर रखते हैं या फिर कोई सा मूवी या सिरियल सेलेक्ट कर के रखे रहते हैं अभी हाई स्कूल नाम का सिरियल चल रहा था कोरियन भाषा में है पर सब टाइटल से कम चल जाता है न 15 एपिसोड हो गया था बहुते मस्त है 15 वें एपिसोड के बाद व्हाट्सअप्प खोले एक दो झन जीएन बोल बाल दिये फिर देखे हमारी सहपाठी संध्या 2 मिनट पहले नया स्टेटस लगायी थी तो उसको फोन लगाये 12 15 दिन में लगा लेते हैं, उसको चिढ़ाते भी खूब हैं एक बार तो अपनी सबसे छोटी बहन लोग को उससे मिलाते टाइम हम बताये की ये लड़की 25वें क्लास् में पढ़ती है इसका किताब इतना भारी भारी है की 12 वीं के बाद हाइट कम होते जा रहा है सबसे छोटी वाली तो हमारा बात सही मान ली थी ...  कभी कभी अब घर जाना रहता है तो एक बार तो पुछना ही पड़ता है फार्मेल्टी के लिए  की वो कब जायेगी चले गयी रहती तो कहते बतायी नहीं अइसे ही चले गयी चार पाँच ठे डाइलाग तो पका पकाया रहता है हमारे पास की किस सिचुएसन में का बोलेंगे... वो भी घर कल ही जाने वाली थी हमारा प्लान ट्रेन से कोरबा तक जाने का था व्हा से धरमजयगढ़ फिर वहा तक घर से किसी को बुला लेंगे सोचे थे । पर संध्या बतायी सूबे 6 बजे ट्रेन है अनुपपुर तक फिर वहा से अम्बिकापुर के लिए तुरत मिल जाती है मेमु उसी में चले जाओ अइसे तो हमको अकेले यात्रा करना अच्छा लगता है अकेले में पूरी अपनी चोईस रहती है खुद के ख़याल में खोये रहो या फिर किसी अजनबी से बात करो.. बात चित का कोई दायरा नहीं विषय भी एकदम रेंडम कुछ भी हो सकता है बिना किसी प्लान का बस हमारे पास भी कुछ पाइंट्स होना चाहिए ट्रेन में जो हमसे बात करने वालो में थोड़ी रुचि हमसे बात करने में जगा सके सो तो हाइए है काहे की हम फेक्ट्स जोड़ जाड़ के फेकने में माहिर हैं....तो संध्या के साथ जाने का मन तो नहीं था पर फिर भी हम बोले उसको व्यवहार के नाम से चलो तुम भी साथ में सूरज पुर उतर जाना देखे की सुब्बे सुब्बे उसका ट्रेन पकड़ पाना पोसिबल नहीं है तो और ज़ोर लगाने लगे तुम बोलो तो मै लेने आ जाऊँगा ये टाइप का फिर जीएन बोल के सोने की कोशिश करने लगे




सुब्बे जल्दी उठे सेव रखे थे उसको बैग में डाल के निकल गए पैदल स्टेसन के तरफ 3 केएम है हमारे रूम से 10 मिनट पहले पहुच के बिस्किट नमकीन सब भी रख लिए बैग में फिर एक सीट पकड़ के बईठ गए सामने एक अंकल बैठे थे पेपर पढ़ रहे थे उनसे हम पेपर लेके पढ़ने लगे अब कैसे भी टाइम पास तो करना ही था ट्रेन चलने लगी चना वाला आया उससे चना लिए बढ़िया से नींबू डालने को बोले खा के फिर पेपर पढ़ने लगे सुब्बे थोड़ा थोड़ा ठंढ था सामने वाले अंकल को खूब खासी आ रही थी हमको भी बेकार लग रहा था गुस्सा वाला बेकार सामने सामने खास रहे थे ये नाम से अब बार बार खास रहे थे और हमको दिक्कत हो रहा था तो हम एक चाय वाले को बुलाये और एक चाय अंकल को देने को बोले हम भी एक चाय ले लिए और पीने लगे अब धीरे धीरे हम दोनों के बीच बात चीत का सिलसिला शुरू हो गया पेपर में छपे खबर के बारे में हम दोनों डिस्कस करने लगे बात बात में पता चला की वो रांची में एक कालेज में प्रोफेसर हैं हमारा तो दिमाग चकरा गया काहे की जिसको हम सामान्य सा  देहाती समझ रहे थे वो तो जनरल डिब्बा में ट्रेवल करते हुये एक प्रोफेसर निकला..गज़ब अब हमको उनकी बातों में इंटरेस्ट आने लग गया हम उनसे उन्ही के बारे में पुछने लगे वो अनुपपुर के आगे छोटा सा स्टेसन है हरद वहीं के रहने वाले उनकी पढ़ायी चिरमिरी के लाहीड़ी कालेज में हुआ था वो बता रहे थे उस समय कैसे कैसे दिक्कत होता था ट्रेन से ही चिरमिरी तक जाना आना करते थे सेनिएर लोग बोले थे ट्रेन में पैसा मत देना सो टी टी से शुरू शुरू में बच बच के निकल जाते थे धीरे धीरे तो पहचान इतना हो गया की टी टी को कमाते देखते थे तो उसी के पैसा से नाश्ता करते थे कह कह के की चाचा खिलाइए कुछ न कुछ आज तो आपको कमाते देखे हैं... नौकरी लगने के बाद जब टी टी से मिले थे और उसको खुद के पईसा से मिठाई खिलाये थे तो वो टी टी रोने लग गया था ..उनकी बातों में हल्का हल्का नशा था हम दोनों सुनाने और सुनने में रम गए थे हमको भी मस्त लग रहा था बिसरी हुयी यादों में डबडबाइ आंखों को और रुँधे गले को हम महसूस कर रहे थे वो कह रहे थे की जब ग्रेजुएसन का रिजल्ट लेने गए थे तो प्रिंसिपल सर तीन लोग का रिजल्ट रोक लिए थे उनका उनके दोस्त चपन और एगो लड़की महामाया भट्टाचार्य  ए तीनों डरा गए की का गलती हो गया है जब कालेज का बाबू बोला तुम लोग को प्रिंसिपल सर बुलाये हैं वो रिजल्ट देंगे उस टाइम पे टीचर का डर  और सम्मान दोनों खूब होता था न जब ये लोग गए तो सर खुदे रसगुला खिलाये और बताये तुम तीनों फ़र्स्ट क्लास पास हुये हो और पुछे का करोगे तीनों तो वो सब बोले नौकरी करेंगे तब सर बोले तब तो मै रिजल्ट नहीं दूंगा फिर वो आगे पढ़ने को बोले सागर विश्वविद्यालय में मुखर्जी बाबू को फोन करके तीनों का व्यवस्था भी जमा दिये उस टाइम पे घर से बाहर जाना बहुते बड़ी बात थी जाके एडमिसन कराये फिर वापस आ गए मुखर्जी बाबू फिर तार करके बुलाये तब जाके फिर पढ़ायी शुरू हुआ..वो बताये की रजनीश उस समय सागर में ही साइकोलोजी के प्रोफेसर थे हमारा तो एकसाइटमेंट बढ़ गया काहे की हम रजनीश के बारे में पढ़े है की कैसे वो सिर्फ ढाई साल में अमेरिका में महानगर रजनीश पुरंम बसा दिये थे उनके काफ़िले में हजारो के तादाद लकजरी कार  चलती थी और यहाँ तक की अमेरिका के प्रेसिडेंट को डर हो गया था की ये वहाँ का प्रेसिडेंट न बन जाए नेक्स्ट एलेक्सन में तो हम रजनीश के बारे में पुछने लगे की सागर में वो कैसे थे व्यवहार सब में और कइसे वो ओशो बन गए वो बताये की सब उनको पागल पागल कहते थे क्यूकी उनकी बातें अजीब होती थी अब 80 के दशक में कोई आदमी इतना खुले विचारो का होगा जीतना आज का आदमी पूरी तरह नहीं हुआ है तो विरोध तो होगा ही और लोग पागल ही समझेंगे वास्तव में विचारो के लिए देश काल और परिस्थितियाँ बहुत मायने रखती हैं अब कश्मीर में खिलने वाला फूल कन्याकुमारी मे तो संघर्ष ही करेगा न विचारों के लिए प्लैटफ़ार्म बहुत मैटर करता है अगर सही बात गलत जगह पे बोलेंगे तो आप गलत ही कहलाएंगे...





बात बात में ही हमलोग अनुपपुर पहुच गए वहा पता चला रविवार को गाड़ी अम्बिकापुर के लिए दोपहर में नही रहती है हम फिर से संध्या को फोन लगा के बोले तुम तो ठग दी हमको आज कोई ट्रेन नही है उसको तीन दिन तक अफ़सोस हुआ था पर उसको का पता जितनी अनिश्चितता रहेगी यात्रा में उतना ही यात्रा रोचक होगा ...उसके बाद स्कूल का एक जूनियर विनय गुप्ता भेटा गया उससे आधा घंटा बात किए बहोत दिन बाद मिला था हम दोनों एकके हास्टल में थे वो बिलासपुर जा रहा था..

फिर हम मनेद्रगढ़ तक ट्रेन पकड़ने का सोचे और एक घंटे बाद बैठ गए ट्रेन में बोर्री डाँड में बड़ा भी खाये गरम बड़ा बोल के ठंढा बड़ा खिला दिया वो वेंडर दु गो गाली मने मन बक दिये उसी टाइम फिर मनेंद्रगढ़ पहुच के बस स्टैंड गए वहा हमको एक लड़का दिखा उसको खूब याद करने का कोशिश किए की ये कोन है फिर उसी से जाके पुछे यार मै तेरे को जानता हू क्या हम दोनों मिल के याद करने लगे मै पूछ नवोदय के हो क्या या जी इ सी में पढ़े हो फिर याद आया हम दोनों दो साल पहले पड़ोसी थे फिर दोनों बस में अगल बगल बईठ गए उसको पैसा देके मै बोला जा खाने पीने का समान ले आ जो खाना हो कुरकुरे बिस्किट सब लेके आया फिर हम दोनों पुराने मकान मालिक का मिल के आधा घंटा निंदा किए यासीन नाम था उसका भइयाथान  में घर है अब एकके तरफ के थे इस लिए पहले भी खूब बात होता था उससे वो हमको बताया नेट फ्लिक्स का विडियो कहा से डाउन लोड होता है दो तीन ठे लिंक भी दिया वो बैकुंठ पुर ही उतर गया हमको तो अम्बिकापुर जाना था

धीरे धीरे शाम होने लगी हल्का हल्का ठंढ भी लग रहा था ये जो यात्रा के टाइम शाम को हल्की हल्की सिहरन वाली जो ठंढ है न हमारे लिए गज़ब की फीलिंग है काहे की जब स्कूल टाइम पे हास्टल से छुट्टियों में  घर जाते टाइम अइसा ही ठंढ लगता था घर जाने की खुशी और सिहरन ये हमारे लिए समोसे के साथ चटनी जैसा काम करती है अम्बिकापुर में हमारा भाई कालू इंतज़ार कर रहा था वो बाइक में आया था जैसे पहुचे वो लेने आ गया अंधेरा हो चुका था दोनों निकल लिए हमको भूख लग रही थी दोनों जाके समोसा खाये मिश्रा जी के यहा खरसिया नाका के पास फिर आगे बढ़ गए आगे ठंढ और बढ़ गयी थी पहाड़ी रास्ते का सफर जो था ऊपर से दूर दूर इक्का दुक्का घर में लाइट जो जल रहा था दिख रहा था अब हम देस्टिनेसन पे पहुचने वाले थे ......     

Tuesday, December 4, 2018

बादलो की दौड़


जब छोटे थे जूनियर क्लास में थे तब खुबे बादलो का दौड़ देखें हैं, ये वो जमाना था जब मम्मी लोग बच्चे को डराने के लिए भूत बघवा अउ   ओंड़का ये सब से डर दिखाती थी, वो टाइम पे जंगल खूब होता था न, बच्चे लोग घूमने के लिए या फिर खेलते खेलते जंगल साइड भाग जाते थे, अब दाई दाउ को फिकर तो लगे रहता है न ये ही नाम से डराते थे ।

ओंड़का का वो टाइम पे खुबे क्रेज था,वो बच्चा पकड़ पकड़ के बोरा मे भर भर  के ले जाता था अउ जंहा जंहा बांध  पुलिया या नया बिल्डिंग बनते रहता था वहा पे बलि  चढ़ाता था, एकदम संघर्ष फिलिम टाइप जइसे उसमे आशुतोष राणा बच्चा उठा के ले जाता था वइसे ही, दोस्त यार भी सब खेलते खेलते थक जाते थे तो बईठ के भूत प्रेत, एक्सिडेंट, फिलिम का स्टोरी अउ  ओंड़का का स्टोरी खुबे सुनते सुनाते रहते थे अरे बड़ी मज़ा आता था सुनने मे, अउ रात रात को डरो लगता था । कुछ दिख मत जाये ये नाम से रात में अकेले अगर बाहर निकल भी गए एमेर्जेंसी में,  तो आँख मूँद के कूद जाते थे जो होगा सो देखा  जायेगा बंद आँख से ही ....।

अब हमारा  घर पहाड़ी इलाक़े में हैं तो विंटर में पहले खुबे ठंढा पड़ता था दिन भर धूप सिकाने का मन करते रहता था, स्कूल में क्लास भी क्लास रूम से बाहर धूप में लगता था बड़ी मज़ा आता था बाहर धूप में बईठ के पढ़ने में आते जाते सब आदमी दिखते रहते थे, नया नया मैटर ज्यादे मिलता था बतियाने के लिए।  पेड़ के नीचे तो कोई बैठना ही नही चाहता था ।




हम लोग में जब आपसे में झगड़ा होता था न वो एकदम अलगे टाइप होता था मुहे मुह में, ज्यादा गाली गलोच नही होता था, वो टाइम गाली बकने वालो को एकदम गंदे समझा जाता था अउ बहुते बड़ी बात थी गाली बकना, लड़ाई में  एक झन कहता था
रुकजा शाम में मै अपने भैया को बुला लाऊँगा तो
दूसरा कहे मै अपने चाचा को ले आऊँगा
पहला मै पापा को लाऊँगा
दूसरा मै दादा को ले आऊँगा,
मै मिथुन को ले आऊँगा वो बड़ी मार मारता है
तो  मै धर्मेंदर को ले आऊँगा वो अउरे ज्यादा मारता है
तो मै शंकर जी को ले आऊँगा
तो मै हनुमान जी को ले आऊँगा,
दो झन के बीच में बाकी सब लोग स्टेंडिंग कमेटी टाइप सुनते रहते थे अउ बीच बीच में साइटेसन दिये हुये इंटीटी के पावर को अनालाइज कर कर के बताते रहते थे की कोन ज्यादा भारी पड़ रहा है, बीच बीच में नजर मेडम लोग तरफ भी मार लेते थे, जो गपियाते हुये स्वेटर बुनते रहती थी अपने लईका को बड़े क्लास की लड़कियो को पकड़ा के, कि मेडम कही आ तो नही रही वरना सेल्फ स्टडि के टाइम पे लड़ते झगड़ते पकड़ा जायें तो खूब मारो पड़ेगा ।

अइसे दिनो में स्कूल बंक करना बहुते बड़ी और दोस्तो के बीच मे सम्मान कि बात होती थी काहे कि कइसे  भी अगर घर में पता चल गया न, कि स्कूल से भागे थे तो गजबे मार पड़ता था, वो टाइम में अगर तबीयत खराब रहे और कोई कह दे स्कूल मत जाना तो बीमारी में भी मने मन लड्डू फूटने लगता था।  अइसा दिन का खूब इंतजार रहता था जब तबीयत खराब हो अउ स्कूल ना जायें अइसे दिन में किताब निकाल के बईठ जाते थे धूप मे, खाना भी धूपे में खाते थे बीच बीच में लेट के हल्का सा आँख मूँदे मूँदे आसमान के तरफ देखते रहते थे नीला नीला आसमान जिसमे सफ़ेद सफ़ेद बादल पूरब पश्चिम- पश्चिम पूरब होते रहता था। शायद इसी लिए ब्लू और व्हाइट फेवरेट कलर है हमारा, कोई बड़ा बादल कोई छोटा बादल कोई भेड़ टाइप तो कोई भालू टाइप कोई एकदम स्लो तो कोई फास्ट, मने मन एक दूरी तय हो जाता था आसमान में, देखें उस दूरी तक कोन सा बादल पहले पहुचेगा, बीच बीच में धूप तेज लगती थी तो जगह बदल  के दूसरे जगह लेट  के कंपिटिसन में पूरी नज़र बनायें रखते थे।  हमारा मन और विचार भी बादलो के बीच फ्री फ्लो उड़ते रहता था, खुद में क्वेरी करते रहते थे ये सब बादल कहा से आ रहे होंगे का जाने बादल में भी कोई रहता होगा उस टाइम पे परी अउ भगवान वाला सिरियल खुबे चलता था न और भगवान सब आसमान से ही उतरते थे उसमे। अरे सनडे को तो लाइट गोल न हो जाये ये नाम से अगरबत्ती भी जला देते थे गज़ब का क्रेज था चन्द्रकान्ता अलिफ लैला कृष्णा रामायण ये सब का अइसा लगता था बादल के ऊपर परी लोग होंगे और उसके भी ऊपर भगवान लोग वो लोग पता नही अपने दुनिया मे क्या क्या काम करते होंगे ।





कभी कही बीच बीच मे चील कोई दूसरी चिड़िया या हवाई जहाज दिखाई देता था तो उसको हमारा नज़र पूरा ओझल होने तक खोज खोज के पीछा करती थी हल्का हल्का आँख मूँदे रहने से आसमान मे रेशा रेशा टाइप भी कुछ दिखता था समझ मे नही आता था का चीज़ है? हमको तो कई बार लगा की का पता आक्सीजन नाइट्रोजन दिख रहा होगा अब लेकिन लग रहा है खुदे  का, आधा खुला आँख का पलक दिखायी देता रहा होगा ये बादलो के दौड़ का मज़ा किसी को कभी नही बताये हैं आज पहली बार यूँ ही ....

छतीसगढ़ का चित्रकूट है बगीचा |

चित्रकूट एक प्रसिद्ध धार्मिक पर्यटन क्षेत्र है। चित्रकूट का नाम आते ही याद आता है भगवान श्री राम अपने अनुज व पत्नी संग वनवास के कई वर्ष...