चार धाम और 12
ज्योतिर्लिंग दर्शन की शृंखला को
आगे बढ़ाना था सो रामेश्वरम से वापसी के बाद ही गुजरात जाने का प्लान बन गया था |
टिकट 2 महीने पहले ही करवा लिया फरवरी का माह घूमने के हिसाब से सही रहेगा ये सोच
के न ज्यादा गर्मी न ज्यादा ठंढ |
15 फरवरी को हमारी यात्रा शुरू हुई मेरे साथ मेरा
दोस्त अश्विनी था हम दोनों साथ साथ पहले भी जा चुके हैं हमारा लक्ष्य यात्रा के
दौरान बेहद कम खर्च वाले ईको टूरिस्म पर रहता है हम अमूमन 15 से 20 किमी तक
प्रतिदिन पैदल चलते हैं खाने पीने और रहने की सस्ती से सस्ती जगह ढूंढते हैं
यात्रा के सबसे किफ़ायती माध्यम को चुनते हैं |
दिन भर का खाना और फल बैग मे रख लिए थे ताकि खरीदना
न पड़े सुबह 9:40 को ट्रेन थी बिलासपुर से अहमदाबाद के लिए पर हमारा प्लान थोड़ा बदल
गया और हम लोग वडोदरा मे उतर गए |
पावागढ़
वडोदरा में रेल्वे स्टेसन वेटिंग रूम से ही तैयार
हो गए, बगल मे ही बस स्टैंड है वहा से बस पकड़ लिए और हालोल पहुच गए
वहा से चम्पानेर दूसरी बस से चम्पानेर से पावागढ़ 2 बसे जाती आती हैं जिनमे किराया
नही लगता पर भीड़ बहूत था इसलिए किराए वाली गाड़ी में बैठ के पावागढ़ पहुच गए पहाड़ी
के ऊपर माँ काली का मंदिर है लगभग 2000 सीढ़िया हैं रोप वे की भी सुविधा थी पर हम
लोग उधर देखे भी नही और 2 किलो संतरा रखा था खाते खाते सीढ़िया चढ़ने लगे करीब 2 घंटे बाद माता जी का दर्शन किए वहा जैन
मंदिर भी था फोटो खिचते खिचाते वापस आ गए |
द्वारका
हमारी ट्रेन अहमदाबाद से द्वारका के लिए थी जिसे हम
रात में वडोदरा से ही पकड़ लिए और सुबह द्वारका पहुच गए वेटिंग रूम में ही तैयार
होकर मंदिर पैदल ही चलने लगे मंदिर लगभग 3 किमी दूर था लॉक रूम में समान और मोबाइल
जमा करा करके लाइन लगा के दर्शन प्राप्त किए इसी हमारी चार धाम की यात्रा सम्पन्न
हुई उसके बाद वही भंडारा में खाना खाये फिर बेट द्वारका जाने के लिए निकल गए |
बेट द्वारका
बेट द्वारका एक द्वीप है ओखा से बोट मिल जाती है
जिसने 20 रुपये किराए में हम बेट द्वारका पहुच गए दोपहर के समय मंदिर बंद हो गया
था शाम को खुलता पर हम नीम के पेड़ के नीचे बैठ के देव स्थान के ऊर्जा के विषय में
चर्चा किए और शांत होकर आधा घंटा बैठे फिर आगे के लिए निकल गए |
नागेश्वर
नागेश्वर में ज्यतिर्लिंग मंदिर है ओखा से बस से
आधे दूर तक चले गए फिर सकड़ा रिक्सा (मोटर साइकल को माडिफ़ाय करा कर बनाया गया ) पकड़
करके नागेश्वर पहुच गए वहा बिलकुल भीड़ नही थी सो आराम से दर्शन किए फिर आधा घंटा
शांत हो कर बैठ गए फिर द्वारका के लिए निकल गए |
शाम के 6 बज गए थे जब हम द्वारका पहुचे पर सूरज
नहीं डूबा था यहा सूर्योदय और सूर्यास्त बिलासपुर से एक घंटे लेट से होता है हम
जल्दी जल्दी कदम बढ़ाते हुये समुद्र किनारे पहुच गए हमे सूर्यास्त देखना था वहा
काफी लोग चहल कदमी रहे थे हम देश के
पश्चिमी छोर में थे हवाएँ चल रही थी
सूर्यास्त का दृस्य बेहद शानदार था हम अंधेरा होने तक वही बैठे रहे सब तरफ कृत्रिम
प्रकाश जगमगाने लगा था अब हम फिर से भंडारे मे जाकर खाना खाये और रेल्वे स्टेसन के
लिए ऑटो पकड़ लिए सोमनाथ के लिए ट्रेन पकड़ना था |
सोमनाथ
रात मे ट्रेन पकड़ लिए इस कारण होटल बुक करना नही पड़ा दिन भर की थकान के कारण नींद जल्दी आ गई नींद
खुली तो हम सोमनाथ पहुँच गए थे सुबह के 5 बज रहे थे पर वहाँ अंधेरा था,
हम लोग सीधे वेटिंग हाल चले गए वही जा कर नहा धुला कर रेडी हो गए,
समान लाक रूम मे रखने चले गए पर हमारे बैग में ताला नही लगा था इस लिए वहाँ रखने
नही दिया गया हम लोग समान लेकर मंदिर तक चले गए वहाँ भी समान रखने की निशुल्क
सुविधा थी समान मोबाइल सब जमा करके जा कर दर्शन प्राप्त किए मंदिर बहोत बड़ा और
शानदार था समुद्र के किनारे होने के कारण एक ओर से मस्त हवा आ रही थी दर्शन के बाद
हम लोग शांत बैठ गए और देव स्थान के ऊर्जा
को अनुभव करने की कोशिश करने लगे, उसके बाद बाहर आए और नाश्ता किए फिर आगे के लिए
योजना बनाने लगे, सोमनाथ के बस स्टैंड तक पैदल पहुँच गए फिर से
तलाला के लिए बस मिल गयी और हम तलाला पहुँच गए |
गिर
तलाला से गिर जाने के लिए बस मिलती है,
गिर में शाशन और देवलिया दो जंगल क्षेत्र पर्यटक के लिए है शाशन में जिप्सी किराए
पर लेना होता है जिसका किराया 2500 रुपये होता है और देवलिया में बस सुविधा है
जिसका प्रति व्यक्ति किराया 150 रुपये है हम लोगो ने बस से घूमना तय किया और
देवलिया पहुँच गए वहाँ बसे 3 बजे शुरू होती सो एक घंटा पेड़ की छांव मैं बैठ कर
टाइम पास किए नाश्ता भी कर लिए वहाँ इंडियन कॉफी हाऊस के अलावा महिला स्वयं सहायता समूह की नाश्ते दुकान थी
जहां वाजिब दाम में हमें अच्छा नाश्ता मिल गया फिर बस पकड़ लिए जंगल में कम ऊंचाई
के पेड़ो की संख्या अधिक थी घास भी ज्यादा
था हिरण चीतल सियार लकड़बग्घा नील गाय सड़क के आर पार दिख रहे थे एक जगह चोटी सी नदी
थी उसके किनारे अपने मैडम के साथ बैठे हुये वनराज भी दिख गए वहाँ पर ड्राईवर ने
गाड़ी रोक दिया और सभी से शांत रहने को कहा हम सभी वनराज की फोटो खिचने लगे आधे
घंटे में हमारा सैर पूरा हुआ अब हम आगे बढ्ने की योजना बनाने लगे,
गूगल मैप से सहायता लेते हुये दीव जाने का रास्ता देखने लगे देवलिया मेन रोड में
नही था इस लिए बस के लिए हमे बहुत देर तक इंतज़ार
करना पड़ा हम लोग सासन होते हुये तलाला वापस आ गए और यहा से दीव जाने के लिए बस का पता
करने लगे, सीधे बस दिउ तक नही थी तो तलाला से उना चले गए और वहा
से दीव के लिए बस मिल गयी ये उस दिन की अंतिम बस थी रात में 9 बजे हम लोग दीव पहुँच
गए |
दीव
होटल मेन मार्केट मे ही था ऑनलाइन बुक कर लिए थे बस
स्टैंड से लगभग 1 किमी पैदल चलते हुये होटल तक गए रात में खाना खा लिए थकान की वजह
से बहुत नींद आ रही थी सुबह जल्दी भी उठना था सो बिना देर किए बिस्तर पकड़ लिए |
सुबह नाश्ता करके समुद्र के किनारे चले गए बीच बहोत सुंदर और रेतीला था इक्के दुक्के
लोग टहल रहे थे एक दो लोग रेत में सीप इकठ्ठा कर रहे थे सूर्योदय हो चुका था इस लिए
समुद्र का पानी चमक रहा था हम लोग रुक नही पाये और डुबकी लगाने के लिए उतर गए काफी
देर बाद पानी से बाहर निकले और फिर होटल आ गए तैयार होकर शहर घूमने निकल गए,
सबसे पहले दीव का किला देखने गए, किला समुद्र के किनारे ही था धूप तेज़ था पर समंदर से
आती हवाएँ धूप और थकान को दूर कर रही थी किले मे एक जगह बेर का पेड़ था हम लोग उसकी
छांव में काफी देर बैठे और पेड़ से गिरते बेर खाये फिर पूरा किला घूमते फोटो खिचते खिचाते
बाहर आ गए उसके बाद पैदल चलते हुये सेंट पॉल चर्च गए फिर वहा से जालंधर बीच चले गए
बीच पथरीला था नहाने के लिए लायक नही था पर फोटो खिचाने के लिए मस्त था बैठने के लिए
अच्छी व्यवस्था थी इसलिए घूमने वाले लोगो ने बीच को बियर बोतले और चखने के प्लास्टिक
से गंदा किया हुआ था हम लोग छांव में बैठ के आधा घंटा गप्प लड़ाते हुये समंदर का हवा
खाये फिर नाइदा गुफा देखने के लिए आगे बढ़ गए, गुफा के पास पहुँचने के बाद पता चला कुछ समय पहले हुये
दुर्घटना के कारण पर्यटन के लिए गुफा को बंद कर दिया गया है हम लोग मन मसोस के रह गए
बाहर से झांक कर देखने की कोशिश किए पर कुछ दिखा नहीं 2 बज चुका था एक रेस्त्रां में
जा कर खाना खाये फिर जूनागढ़ के लिए बस पकड़ लिए |
जूनागढ़
रात को 12:30 बजे हमलोग बस स्टैंड पहुचे वहा से रेल्वे
स्टेसन चले गए, रेल्वे स्टेसन में ही रिटायरिंग रूम बुक कर लिए थे
वहा साफ सफाई और बाकी सुविधा भी ठीक ठाक थी जूनागढ़ में घूमने की कई जगह थी पर हम लोग
यहा गिरनार के पहाड़ियों पे सिर्फ ट्रेकिंग करने का प्लान बनाए थे सुबह जल्दी निकल गए
महा शिवरात्रि का दिन था हम लोग आटो से भवनाथ पहुँच गए यहा बहुत बड़ा मेला लगा हुवा
था भीड़ बहुत ज्यादा थी भवनाथ में महाशिवरात्री का मेला बहुत फेमस है हम लोग खुद की
पीठ थपथपा लिए क्यूंकी अंजाने में ही हम मेला देखने पहुँच गए थे |
धीरे धीरे भीड़ को चीरते हुये आगे बढ़ गए गिरनार ट्रेक यही से शुरू होता है 10000 सीढ़ियाँ
है पहाड़ियो पर फिर सुंदर वस्तुशील्प लिए जैन मंदिर उसके ऊपर अम्बा जी का मंदिर और अंतिम
पड़ाव पर गिरनार मंदिर है नीचे में ही कई लोग श्रद्धालुओ को खाने का समान शर्बत मुफ्त
में दे रहे थे इस सुविधा का हम लोग भी लाभ उठाए और पेट भर लिए केला और पानी खरीद कर
झोला में रख लिए पुराने ट्रेकिंग के अनुभव के आधार पे और भीड़ में आगे कदम बढ़ाने लगे
जैसे जैसे ऊपर जा रहे थे भीड़ थोड़ी कम होती जा रही थी सीढ़ियो के दोनों ओर पेड़ पौधे थे..............................
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