केदारनाथ से वापस आने के बाद सौरभ को जब ट्रेकिंग
का संस्मरण सुनाया तब वो बोला एक बहोत मस्त जगह है मनेन्द्रगढ़ के पास,
रुक जा टाइम मिले तो कभी तेरे को लेके जाऊँगा बस दिमाग मे ये बात रह गयी देखें तो
क्या है जटाशंकर में। एक दिन भैयाथान निवासी मित्र तरुण फोन किया..आओ यार मिलने
इधर भी कहीं घुमतें हैं तब मै उससे बोला
भाई कहीं ट्रेकिंग करते हैं तब वो बताया आ जाओ जटाशंकर चलेंगे,
जटाशंकर उसके पैतृक गाँव कछौड़ से लगभग 20 किमी दूर है,
मै और सौरभ दोनों योजना बना कर निकल गए।
दुर्गम वनक्षेत्र पार कर पहाड़ी में बनी गुफा के
अंदर गुफा में स्थित है जटाशंकर मंदिर, जो मनेन्द्रगढ़
से 35 किमी दूर है 4 चक्का वाहन से लगभग 32 किमी दूर तक जा सकते हैं,
वहा से फिर पैदल सीढ़ी दार मार्ग से जाना पड़ता है मनेन्द्रगढ़ विकासखंड के अंतर्गत
आने वाले ग्राम पंचायत बिहारपुर के बैरागी से लगभग १२ किमी दूर घनघोर जंगल से आगे
पहाड़ी के नीचे स्थित प्राचीन शिवमंदिर जटाशंकर में, जहां दुर्गम वन क्षेत्र को
पार कर पहाड़ी के अंदर गुफा में लगभग 52 फिट से ज्यादा घुटनों और कोहनियों के बल ही
चलकर अंदर पहुंचा जा सकता है।
क्षेत्र में स्थित इस प्राचीन और दुर्गम पहुंचविहीन क्षेत्र में शिव मंदिर को लेकर काफी मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। यही वजह है कि सावन के महीने में यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। न केवल कोरिया जिले से वरन् आसपास के जिलों से श्रद्धालु अपने परिवार के साथ यहां पहुंचते हैं और भगवान शिव की पूजा अर्चना करते हैं। ट्रेकिंग वाले रास्ते में मंदिर जाने के लिये लगभग १२ किमी पैदल जाने के बाद एक विशालकाय पहाड़ी मिलती है जिसे देखकर ऐसा महसूस होता है कि कोई सर्प फन फैलाकर बैठा हो। इसी पहाड़ी के नीचे स्थित है प्राचीन शिव मंदिर। इस प्राचीन शिव मंदिर को क्षेत्र के श्रद्धालु जटाशंकर के नाम से पुकारते हैं। इस मंदिर का नाम जटाशंकर पड़ने के पीछे शिव की प्राचीन शिवलिंग में जटाओं जैसी आकृति साफ दिखाई पड़ती है गुफा के अंदर गुफा वाले इस मंदिर से कई मान्यताएं जुड़ी हुई हैं,
इस संबंध में स्थानीय लोगो के अनुसार जटाशंकर का इतिहास काफी पुराना है। जब भगवान शिव भस्मासुर के डर से पहाड़ियों के अंदर जाकर छुप गये थे तब उनकी जटाओं के अवशेष पत्थरों में बन गये जो आज भी देखे जा सकते हैं। वहीं इस मंदिर में प्रगट हुई भगवान शिव की मूर्ति के ऊपर कुदरती रूप से जल की बूंद अपने आप गिरती है।
मै और सौरभ सुरजपुर पहुच गए वहाँ स्कूल के कई मित्रो से मुलाक़ात हुई रात्री विश्राम मित्र विश्वनाथ के घर पर हुआ फिर अगले दिन सुबह तरुण मै और सौरभ तरुण के गाड़ी में निकल गए। सुबह बहोत कुहरा छाया था फिर सूरज निकला तो मौसम बहोत शानदार हो गया । रास्ते में बरबसपुर के एक छोटे से होटल का नाश्ता और मिठाइयाँ फेमस है वही रुक कर नाश्ता किए और आगे रास्ते भर रुक रुक के फोटो खिचते खिचाते आगे बढ़ गए। सुबह 9 बजे लगभग हम तरुण के गाँव पहुच गए ये एकदम 80 के दशक के फिल्मो में दिखने वाला गाँव था मकान पक्के के बने हुये थे करीब 30-40 घर होंगे जंगल के बीच पहाड़ के नीचे में बसाहट बरगद के पुराने पेड़ जिसके लटकते जड़ो में झूला झूलने का आनंद लिया पहाड़ के पास पानी का बहता हुआ स्रोत था जहाँ जाकर स्नान किया.. वाह गाँव का ताजा ताजा पानी मन एकदम तरोताजा हो गया पानी एक तालाब नुमा जगह पर इकट्ठा हो रहा था वहाँ कमल खिले हुये थे आधा घंटा मस्ती करते हुये तरुण के घर गए खाना पकड़ लिए और चाय पी के जटाशंकर के लिए निकल गए ।
ट्रेकिंग वाला रास्ता पहाड़ियों से होकर जाता था तरुण बोला इससे जायेंगे तो शाम को पहुचेंगे आज ही वापस आना है तो गाड़ी से चलो बस 2 किमी पैदल चलना पड़ेगा, समय को देखते हुये कार मे ही निकल गए दोनों ओर घने भयावह जंगल, ताजी हवा हल्की सिहरन रास्ते पे छोटे छोटे नदी नाले इक्का दुक्का मकान पार करते हुये, एक छोटा सा मंदिर दिखायी दिया उसके आगे रास्ता नही था वही गाड़ी पार्क किए और पद यात्रा पे निकल गए। गुफा पहाड़ियों पे नीचे था सीढ़ियाँ पक्के की बनी हुई थी, वापस आते हुये लोगो के चेहरे पे जो थकान था वो हमे हतोत्साहित कर रहा था पर जंगल के बीच का शानदार नज़ारा एक अच्छा सा केमरा वाला मोबाइल हम सबको आगे खिच रहा था, रास्ते भर हम लोग स्कूल के दिनो की बातें याद कर रहे थे और ठहाके लगा रहे थे एक दूसरे को कैसे तंग करते थे, जो काम करने की मनाही थी उन कामो में हम कितने माहिर थे और कब कब होशियारी से मार खाने से बच गए या किसी और को मार खिला दिये, यादों में से एक से एक शरारतें निकल कर गुदगुदा रही थी। हम लोग गुफा के पास पहुच गए चारो ओर पहाड़ियाँ, जंगल, बड़े से चट्टान के अंदर गुफा.. वहाँ पर मीठा पानी का स्रोत था जिससे पी कर सबने थकान मिटाया।
अब बारी थी गुफा के अंदर जा कर प्रभु
के दर्शन की, गुफा बेहद ही सकरा था घुटनो के बल या बैठ कर सरक
सरक कर ही आगे बढ़ सकते थे अंदर काफी अंधेरा
था अंदर से पानी भी निकल रहा था और साँप के होने का भी ख़तरा था धीरे धीरे मोबाइल
के प्रकाश में, डर और अंधेरा दोनों से लड़ते हुये आगे बढ़ रहे थे।
अंदर काफी गर्मी थी और साँस लेने मे तकलीफ़ हो रही थी 52 फिट की दूरी भी बहोत
ज्यादा लग रही थी मै मोबाइल के प्रकाश के साथ साथ वीडियो रेकोर्डिंग भी ऑन कर दिया
था अंदर आने जाने का पूरा सीन रिकार्ड हो
गया, अंदर जा कर दर्शन प्राप्त किए और जल्दी जल्दी वापस भी निकल गए
डर था प्रभु के गले मे लिपटा सेवक सामने न आ जाए। बाहर आ कर थोड़ी देर बैठ कर
प्राकृतिक सुषमा को निहारते हुये एक दो गीत कविता को गुनगुनाने लगे फिर वापस आने
के लिए निकल गए चढ़ाई थोड़ी मुश्किल वाली थी पर पक्की सीढ़ियो के कारण तकलीफ़ थोड़ी कम
हो रही थी धीरे धीरे रुकते रुकते हम अपनी गाड़ी तक आ गए और फिर वहाँ खाना खाये उसके
बाद मनेंद्रगढ़ के लिए निकल गए वही से हमे
बिलासपुर के लिए ट्रेन पकड़ना था ।
सुझाव : ट्रेकिंग का कम अनुभव वालो के लिए भी
ट्रेकिंग करने के लिए ये बहुत ही शानदार जगह है। टार्च और खाने का समान ले कर ही
जायें, जिन्हे साँस संबंधित कोई तकलीफ़ हो वो गुफा मे प्रवेश न करें।
बिलासपुर से चिरमिरी जाने वाली पेसेंजेर ट्रेन से
मनेंद्रगढ़ तक जा सकते हैं वहा से गाड़ी बुक कर लें अगर दुर्ग अम्बिकापुर
एक्सप्रेस से यात्रा करते हैं तो उदल कछार स्टेसन पर उतरें।
बृजनंदन सिंह।
Shandar yatra behtreen writer dost ke sath
ReplyDeletethank you bhai.. abhi aur yatra karna hai
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