Tuesday, December 4, 2018

बादलो की दौड़


जब छोटे थे जूनियर क्लास में थे तब खुबे बादलो का दौड़ देखें हैं, ये वो जमाना था जब मम्मी लोग बच्चे को डराने के लिए भूत बघवा अउ   ओंड़का ये सब से डर दिखाती थी, वो टाइम पे जंगल खूब होता था न, बच्चे लोग घूमने के लिए या फिर खेलते खेलते जंगल साइड भाग जाते थे, अब दाई दाउ को फिकर तो लगे रहता है न ये ही नाम से डराते थे ।

ओंड़का का वो टाइम पे खुबे क्रेज था,वो बच्चा पकड़ पकड़ के बोरा मे भर भर  के ले जाता था अउ जंहा जंहा बांध  पुलिया या नया बिल्डिंग बनते रहता था वहा पे बलि  चढ़ाता था, एकदम संघर्ष फिलिम टाइप जइसे उसमे आशुतोष राणा बच्चा उठा के ले जाता था वइसे ही, दोस्त यार भी सब खेलते खेलते थक जाते थे तो बईठ के भूत प्रेत, एक्सिडेंट, फिलिम का स्टोरी अउ  ओंड़का का स्टोरी खुबे सुनते सुनाते रहते थे अरे बड़ी मज़ा आता था सुनने मे, अउ रात रात को डरो लगता था । कुछ दिख मत जाये ये नाम से रात में अकेले अगर बाहर निकल भी गए एमेर्जेंसी में,  तो आँख मूँद के कूद जाते थे जो होगा सो देखा  जायेगा बंद आँख से ही ....।

अब हमारा  घर पहाड़ी इलाक़े में हैं तो विंटर में पहले खुबे ठंढा पड़ता था दिन भर धूप सिकाने का मन करते रहता था, स्कूल में क्लास भी क्लास रूम से बाहर धूप में लगता था बड़ी मज़ा आता था बाहर धूप में बईठ के पढ़ने में आते जाते सब आदमी दिखते रहते थे, नया नया मैटर ज्यादे मिलता था बतियाने के लिए।  पेड़ के नीचे तो कोई बैठना ही नही चाहता था ।




हम लोग में जब आपसे में झगड़ा होता था न वो एकदम अलगे टाइप होता था मुहे मुह में, ज्यादा गाली गलोच नही होता था, वो टाइम गाली बकने वालो को एकदम गंदे समझा जाता था अउ बहुते बड़ी बात थी गाली बकना, लड़ाई में  एक झन कहता था
रुकजा शाम में मै अपने भैया को बुला लाऊँगा तो
दूसरा कहे मै अपने चाचा को ले आऊँगा
पहला मै पापा को लाऊँगा
दूसरा मै दादा को ले आऊँगा,
मै मिथुन को ले आऊँगा वो बड़ी मार मारता है
तो  मै धर्मेंदर को ले आऊँगा वो अउरे ज्यादा मारता है
तो मै शंकर जी को ले आऊँगा
तो मै हनुमान जी को ले आऊँगा,
दो झन के बीच में बाकी सब लोग स्टेंडिंग कमेटी टाइप सुनते रहते थे अउ बीच बीच में साइटेसन दिये हुये इंटीटी के पावर को अनालाइज कर कर के बताते रहते थे की कोन ज्यादा भारी पड़ रहा है, बीच बीच में नजर मेडम लोग तरफ भी मार लेते थे, जो गपियाते हुये स्वेटर बुनते रहती थी अपने लईका को बड़े क्लास की लड़कियो को पकड़ा के, कि मेडम कही आ तो नही रही वरना सेल्फ स्टडि के टाइम पे लड़ते झगड़ते पकड़ा जायें तो खूब मारो पड़ेगा ।

अइसे दिनो में स्कूल बंक करना बहुते बड़ी और दोस्तो के बीच मे सम्मान कि बात होती थी काहे कि कइसे  भी अगर घर में पता चल गया न, कि स्कूल से भागे थे तो गजबे मार पड़ता था, वो टाइम में अगर तबीयत खराब रहे और कोई कह दे स्कूल मत जाना तो बीमारी में भी मने मन लड्डू फूटने लगता था।  अइसा दिन का खूब इंतजार रहता था जब तबीयत खराब हो अउ स्कूल ना जायें अइसे दिन में किताब निकाल के बईठ जाते थे धूप मे, खाना भी धूपे में खाते थे बीच बीच में लेट के हल्का सा आँख मूँदे मूँदे आसमान के तरफ देखते रहते थे नीला नीला आसमान जिसमे सफ़ेद सफ़ेद बादल पूरब पश्चिम- पश्चिम पूरब होते रहता था। शायद इसी लिए ब्लू और व्हाइट फेवरेट कलर है हमारा, कोई बड़ा बादल कोई छोटा बादल कोई भेड़ टाइप तो कोई भालू टाइप कोई एकदम स्लो तो कोई फास्ट, मने मन एक दूरी तय हो जाता था आसमान में, देखें उस दूरी तक कोन सा बादल पहले पहुचेगा, बीच बीच में धूप तेज लगती थी तो जगह बदल  के दूसरे जगह लेट  के कंपिटिसन में पूरी नज़र बनायें रखते थे।  हमारा मन और विचार भी बादलो के बीच फ्री फ्लो उड़ते रहता था, खुद में क्वेरी करते रहते थे ये सब बादल कहा से आ रहे होंगे का जाने बादल में भी कोई रहता होगा उस टाइम पे परी अउ भगवान वाला सिरियल खुबे चलता था न और भगवान सब आसमान से ही उतरते थे उसमे। अरे सनडे को तो लाइट गोल न हो जाये ये नाम से अगरबत्ती भी जला देते थे गज़ब का क्रेज था चन्द्रकान्ता अलिफ लैला कृष्णा रामायण ये सब का अइसा लगता था बादल के ऊपर परी लोग होंगे और उसके भी ऊपर भगवान लोग वो लोग पता नही अपने दुनिया मे क्या क्या काम करते होंगे ।





कभी कही बीच बीच मे चील कोई दूसरी चिड़िया या हवाई जहाज दिखाई देता था तो उसको हमारा नज़र पूरा ओझल होने तक खोज खोज के पीछा करती थी हल्का हल्का आँख मूँदे रहने से आसमान मे रेशा रेशा टाइप भी कुछ दिखता था समझ मे नही आता था का चीज़ है? हमको तो कई बार लगा की का पता आक्सीजन नाइट्रोजन दिख रहा होगा अब लेकिन लग रहा है खुदे  का, आधा खुला आँख का पलक दिखायी देता रहा होगा ये बादलो के दौड़ का मज़ा किसी को कभी नही बताये हैं आज पहली बार यूँ ही ....

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