नींद
जइसे खुला सीधे मोबाइल मे टाइम देखे अउ घबरा गए काहे कि 9.20 बज गया था डर लगने लगा सिन्हा जी
हाजिरी रजिस्टर में अपसेंट न लगा दे रोज दिन कोनो हाल मे 9.15 तक तो उठे जाते थे
आज का जाने कइसे लेट हो गया था अइसे तो दु बार 5.30 अउ 7.30 में मोबाइल का अलार्म
नींद खराब किया था पर तनी सा अउ सुत ले के चक्कर में अब भागम भाग हो गया खैर अइसा
एमर्जेंसी का खूब एक्सपिरियन्स था अउ
डिप्टी सर लेट होने से नाराज भी कभी नही होते थे उ बड़े शांत स्वभाव के हैं पर
अपसेंट रजिस्टर नया नया शुरू हुआ था न अउ दु दिन से हमारा नाम उसमे सबसे ऊपर था बस
यही कारण घबरा रहे थे ।
ब्रश
करके सीधे नहा लिए, गाँव से आते टाइम मम्मी 6 जोड़ा
कपड़ा प्रेस करके धर दी थी पर अब खोजने का फुर्सत नई था न, देखे
सामने ललका टी शर्ट पडले था कल अउ परसो भी उसी को पहने थे मुसीबत में इहे काम आता था उसी को पहिने कपार पे दु बार हाथ
फेरे कंघी नही खोजे काहे कि बीते रोज कंघी खोजने मे ही लेट हो गए थे, तेल अउ क्रीम बैगवे में डाल के सरपट भागे 9.43 तक पहुँच गए, अइसे तो सिन्हा जी हमको खूब पसंद करते थे काहे कि हम उनको बढ़िया बढ़िया
कविता सुनाते रहते थे यही नाम से उनसे व्यवहार बना हुआ था जब तक हमसे पहले कोई
दूसरा लेट आदमी नही आता था तब तक हमारा नाम रजिस्टर में नही चढ़ाते थे आज हम पहिले
ही थे अउ खाली तीने मिनट लेट थे सो बच गए जल्दी से साइन किए ताकि लेट साइन करते
कोई टोंक न दे अउ सेक्सन में चले आए अउ
सबसे हाथ मिलाये नमस्ते गुडमानिंग हो गया फिर कोने में जो कुर्सी रखा था उसमे बईठ
के आधा बाटल पानी पी दिये फिर बड़े बाबू से बोले “ये बड़े बाबू चहिया न पिलईबा ”
समरेन्द्र भइया बड़े बाबू अउ हम तीनों फिर चल दिये चाय पीने ।
चाय
पीते पीते बड़े बाबू याद दिलाये कि कल छुट्टी है हमारा तो दिमागे घूम गया कि तीन दिन घर में करेंगे का? गाँव जाये चाहे इंहा रहे छुट्टी
का दिन सूतते सूतते निकल जाता है पेट
दुखते तक सूतते हैं हम (भूख पियास से) यही नाम से छुट्टी में आज कल कही न कही चल जातें
हैं, चाय पी के आए अउ सोचने लगे तीन दिन है कहा जायें पिछले
बार भोपाल गए थे तो उज्जैन नही जा पाये थे सबसे पहले उज्जैन जाने का ही सोचे अउ
तुरंत भोपाल तक रिसर्वेसन आने जाने दोनों का करा लिए उसके बाद देखना शुरू किए कि
कहा कहा जा सकते हैं तीसरी कक्षा मे ऊंकारेश्वर अउ महेश्वर भी पढ़े थे, सोचे वहा भी चल देंगे । उसके बाद पप्पू को फोन लगाये बताने के लिए कि कल
हम आ रहें हैं वो वही भेल मे इंजीनियर है भौजी अउ भतीजी के चलते बताना पड़ता है नही
तो उसके पास तो कभी भी चल दे, वो देहाती आदमी है, जब भी कोई दोस्त जब मिलने जाये न
तो खूब खुश होता है। कोई पिछले बार वो पूरा भोपाल घुमाया था बोटिंग भी किए थे भोज
तालाब में खूब फोटो भी खिचवाए थे अउ फ़ेस बूक में भी डाले थे एक जगह पे बड़ा सा
मिलेटरी वाला टैंक रखा था उसके आगे पीछे हो के दस बारह थे फोटो अउ खिचवाए थे वो
फोटो खूब मस्त था बहुत दिन तक उसको व्हाट्स अप मे डीपी बना के रखे थे। पप्पू कहने
लगा अउ किसी को भी साथ मे लेते आने को हम बोले किसको लेके आयें एगो दोस्त है रोशन उसको सब चकरी बोलते हैं उसी को
साथ लाने को बोला तब हम चकरी को बेमन का फोन लगा के पूछे “चलोगे बे साथ में” इतना
सुनते ही उल्टा वो गरियाने लगा बोला अभी तक हरिद्वार वाला बात भुला नही हूँ मै, हुआ का था कि कॉलेज खतम होने के बाद हम दु महिना के लिए हरिद्वार गए थे
वोलुंटियरिंग करने अउ वो दिल्ली मे कोचिंग कर रहा था उसको दु दिन के लिए बुलाये थे
हम हरिद्वार बोले थे “आओ तुमको गंगा मे डुबकी लगवाते हैं” सितंबर का महिना था
राज्य परिवहन के बस मे आते आते उसको ठंढा लग गया, अब हमको का
पता जैसे वो 6 बजे पहुँचा कि तपाक से उसको लेके गंगा घाट चल दिये दु बार डुबकी
मरवाये फिर नाश्ता पानी कर के मंशा देवी उसके बाद चंडी देवी वो भी पैदल, वापस आते आते तो उसका जो हालत खराब हुआ बुखार पकड़ लिया उपर से थकान, का बताये गोली खिलाये उसको अउ कपार भी दबाये 3 दिन तक वइसे ही रहा ले दे
के वापस जाने लायक हुआ, आज तक गरियाता है । अगर वो साथ
में चल भी देता न तो पूरा खर्चा हमी उठाना
पड़ता ये नाम से भी ज्यादा ज़ोर भी नही लगाये ।
उज्जैन सिंहासन बत्तीसी
ऑफिस में दिन काटते काटते शाम हो गया अब हम समय से
भागने के लिए तैयारी करने लगे वो का है कि डिप्टी सर लेट आने पे नही डाँटते थे पर
लेट तक कामो करवा लेते हैं , तो कहीं फस न जायें लेट तक इस लिए
मुंडी छुपाते हुये निकल गए जा के सबसे पहले खोजने लगे कि कोन कोन से कपड़ा पे फोटो
अच्छा आएगा ज्यादा समान रखेंगे नही नही तो बैग भारी हो जाएगा सोचते सोचते पैकिंग
किए अउ स्टेसन के लिए पैदले निकल गए अमरकंटक एक्सप्रेस पकड़ना था जा के स्टेसन में
ही खाना खाये मारवाड़ी के यहाँ वो का है कि वैजिटैरियन आदमी मारवाड़ी अउ राजस्थानी
भोजनालय ही खोजता है वहाँ से निकले जा स्टेसन मे आने जाने वालो को देखने लगे सफर
करने में नया नया सब कुछ दिखायी देता है तो दिमाग मे नया नया बात भी आता है इसी
लिए तो यात्रा करना घूमना फिरना ये सब के ऊपर विद्वान लोग कुछ कुछ लिखते रहते हैं
पहली से लेके बारहवी तक हर क्लास मे एक न एक यात्रा वृतांत जरूर रहता था कईठे
फिल्मों बना है इसी पे खैर 9 बजे ट्रेन आ गयी हम अपना सीट पकड़ लिए जूता को एक दम
अंदर घुसा के रखे डर तो लगता ही है कि कोई पार न करदे अउ ऊपर वाली सीट पे लेट गये मोबाइल निकाल के
गूगल मैप मे दूरी नापने लगे जहा जहा जाना है कइसे जाएँगे कितना टाइम लगेगा तबे
पप्पू का फोन आया वो पूछ रहा था कि कितने टाइम हम उसके घर पहुचेंगे पर उसके ऑफिस
का अगले दिन छुट्टी नही था इस लिए हम कह दिये पहले हम उज्जैन जायेंगे उसके बाद
बताएंगे उसके बाद इनस्टा ग्राम मे फोटो देखने लगे नया नया शौक पाले थे इसका, का है कि केतना भी गंदा शकल हो उसमे अच्छा दिखता है खूब सारा फ़िल्टर
फेसेलिटी है अइसे वइसे काला गोरा नीला पीला जइसे चाहिए वइसे ही रंग बदल दीजिये फोटो का, हो गए
वैरि स्मार्ट अउ गुड लूकिंग । अभी फ़ेस बूक अउ व्हाट्स अप बंद कर दिये थे का है कि खूब टाइम पास हो जाता था अउ सोने का टाइम भी
गड़बड़ा जाता था न, अउ तो अउ आफ़िसो का मैसेज आ जाता था व्हाट्स अप में अउ पता भी चल जाता था कि देखे हैं कि नही सो अब खाली टेलीग्राम
अउ इनस्टा ग्राम चला रहे हैं थोड़ी देर में टी.टी. साहब भी आ गए उनको हम
अपना ऑफिस वाला आइ डी कार्ड दिखाये, का है कि रेल्वे वाले
हैं न तो थोड़ा तो अपनापन रहता ही है, उसी टाइम एगो संगीत वाले भइया, जिनका बाल खूब लंबा है, उनका ड्यूटि जी.एम
आफिस में ही किसी विभाग में है, तबला या कुछ न कुछ बजाते हैं, वो भी मिल गए, उनका घर एमपी में ही कहीं साइड होगा
चेहरा देख के ही लगता है तो जा रहे थे, दूर से ही हम दोनों
मे कुछ कुछ बात हुआ पर ट्रेन के आवाज मे दोनों को कुछ सुनायी नही दिया हम भी अइसा
रिएक्ट कर दिये कि समझ गए हैं फिर वो चले गए ।
लोहानी गुफा मांडू
ढेरे
रात हो गया था अउ मोबाइल में नेटवर्क भी गोल हो गया था तब हम सोचे अब सुता जाये
बिलासपुर से कटनी वाले रस्ता में ज्यादा भीड़ भाड़ रहता नही है, जंगल ज्यादा है न, दिन रहता तो बढ़िया देखते देखते
जाते, जंगली फल भी बेचाने के लिए आता है चार बिही ये सब अइसे
इलाक़े में ड्यूटि करने वाले रात में कइसे करते होंगे येही सब सोचते सोचने सुत गए
सुब्बे सीधे नींद खुला जबलपुर में, वही चाय पिये नेटवर्क भी
आ गया था फिर गूगल में देखने लगे कि उज्जैन के आसपास अउ कोन कोन जगह है देखने लायक
तब देखे कि महेश्वर जा ही रहें है वहाँ से 2 घंटा में मांडू है रानी रूपमती अउ बाज
बहादुर का नाम बचपने से सुनते आ रहे थे सोचे मांडू भी जाब्बे करेंगे..
नीचे
के सीट पे खिड़की के किनारे बैठ के बाहर का नज़ारा देख रहे थे दो और भाई साहब लोग आए
बगल मे बैठ गए दोनों कोई कंपनी वाले लग रहे थे मार्केटिंग से रिलेटेड, काहे की एकके रंग का कपड़ा पहिने थे अऊ टार्गेट – टार्गेट कर रहे थे भोपाल
कोई मीटिंग में जा रहे थे, हम उन्ही लोगो के बात को सुन रहे
थे उसके बाद एक स्टूडेंट टाइप का लड़का भी आया बैठ गया वो मोबाइल निकाल के हेडफोन
लगा के गाना सुनने लगा बढ़िया धूप निकल आया था फिर 9 बज गया अब टेलेग्राम मे मैसेज
आना शुरू हो गया काहे की एक ठे ट्रेडिंग ग्रुप में हम एक्टिव मेंबर है न, शेयर मार्केट खुलने का टाइम हो गया था सो हम भी ट्रेडिंग अकाउंट खोल के
बैठ गए हम भी इंट्रा डे ट्रेडिंग कर लेते है तनी मनी पर नेट स्लो चल रहा था चार्ट
खुलने में ही 2 मिनट लग जा रहा था तो सोचे आज ट्रेडिंग नहीं करेंगे सो खाली मैसेजे
देख रहे थे देवांग हाउसिंग फ़ाइनेंस का शेयर खुबे गिरा, उस
दिन हमारा दोस्त मोहन 3 लाख का प्रॉफ़िट बूक किया टेलीग्राम ग्रुप के कई लोगो की चाँदी रही हम
खाली सबको बधाई दे रहे थे ट्रेन एक घंटा लेट चल रही थी हम फिर से प्लानिंग रिवाइज
करने लगे आईआरसीटीसी खोल के देखे भोपाल से कोन सी ट्रेन मिलेगी उज्जैन के लिए एगो
गाड़ी थी एक घंटा बाद हम बोले ये सही है सीधे उतर के खाना खाएँगे अऊ गाड़ी पकड़ लेंगे
वइसे ही किए स्टेशने के बाहर एगो होटल मे थाली आर्डर कर दिये हमारे सामने जो भाई
साहब बैठे थे ऊ फोने में लगे थे उनके बात से लग रहा था जरूर ये अपने साइडे के हैं
उनका बात खतम हुआ तब हम पुछे उनसे कहा घर है आपका, वो बताये पत्थल
गाँव हम भी बताये हमारा घर भी उधर ही है वो कोई रिश्तेदार के यहा आए हुये थे पहले
एम पी अऊ सी जी एक्के था न एहि नाम से
राजधानी में बहुते लोग नौकरी करते थे अब वही बस गए हैं। खा पी के हम जा के उज्जैन
वाली गाड़ी मे बैठ गए थोड़ी देर हमारी गाड़ी खुल गयी थी हम जनरल डब्बा में बैठे थे
काहे की रिजर्वेसन में किसी के सीट में बईठ जाइये तो आदमी ढंग से बाते नही करता है
अऊ जनरल में सब एक बराबर एक दूसरे से बात करते है एक से एक ज्ञानी आदमी बैठे रहते
हैं नया नया बात पता चलता है अऊ आस पास के सवारी ज्यादे रहते हैं उनसे लोकल
क्लाइमेट वेदर हाल चाल सब पता चल जाता है, येही सब में हम
सामने वाले भाई साहब से कइसे कइसे कहा कहा घूमना है डिस्कस कर लिए ट्रेन के अगल
बगल दोनों साइड पवन चक्की लगा हुआ था देख के बहुत अच्छा लग रहा था मन कर रहा था
उतर के फोटो खिचा ले काहे की अइसा सीन हम पहले खाली फिल्मे में देखे थे फिर थोड़े
देर मे उज्जैन आ गया अभी तक हम नहाये तो थे नही अऊ जाना था मंदिर अइसे तो भगवान
खाली भाव के भूखे हैं पर इतने भी प्रेक्टिकल आदमी हम नही है कि बिना नहाये
महाकालेश्वर के दर्शन कर आयें वो भी पहली बार में, राते में
इंदौर निकल जाने का प्लानिंग जमा था सो एसी वेटिंग हाल में गए बाहर जो मेडम बैठी
थी उनको आईडी दिखा के 15 मिनट मे रेडी हो गए बाहर निकले एगो आटो वाला को पकड़े बोले
4 घंटा मे कहा कहा घुमा दोगे अऊ केतना लोगे वो 6 गो जगह गिनाया बोला 300 लेगा अऊ
महाकालेश्वर में ड्रॉप कर देगा हम मोल भाव किए बिना बईठ गए रात में इंदौर जाना था
न, पहले मंगल नाथ मंदिर गए यहा सब मंगल का शांति कराते हैं
फिर 4 तो गुड़िया लोग बैठे थे उनसे बोले छोटी हमारा फोटो खिच दो, खिचवाए थेंक यू बोल के निकल गए फिर एक आश्रम गए सेम रोड में पड़ता था तो
आटो वाला ले गया उसके बाद भैरव बाबा मंदिर
बीच बीच में आटो वाला पूरा लोकेसन के हिसाब से स्टोरी भी सुना रहा था, वो बताया भैरव बाबा शंकर जी के सेना पति हैं इस लिए महाकालेश्वर से पहले
यहा जाते हैं अउ इनपे दारू भी चढ़ाया जाता
है हम को खाली दर्शन का क्रेज है प्रसाद हम नही चढ़ाते वो का है न भगवान के दर्शन
का क्या दर्शन है इस पे हम काफी विचार करते रहते हैं अपने हिसाब से, सब दारू का छोटा छोटा बोतल वही पे मिल रहा था, लेके
आए थे एगो महाशय तो आरएस का खंभा लेके खड़े थे भीड़ कि वजह से ऊपर उठा के रखे थे हमारे
बगल वाले भाई साहब उसको देख देख के लार लील रहे थे हम भी मने मन बोले का भैया
“बाबा के साथ पैक सेक लगाओ गे का “ वहा से निकल के भृतहरी गुफा गए अंदर घूम के आए
फिर बगल के घाट मे जाके सेलफ़ी लिए अउ आटो वाले भैया से बोल के फोटो भी खिचाए सफ़ेद
टी शर्ट अ उ खाकी पैंट मे हम एक दम मस्त
दिख रहे थे तुरते फोटो को इनस्टा ग्राम मे डाल दिये बिना फ़िल्टर किए उसके बाद सी
टी में आ गए वहा पे शिप्रा घाट मे नदी कि आरती हो रही थी एक दम गंगा जी के आरती
जइसे, कुंभ वही पे लगता है, आरती के
बाद हम पैदल पैदल सिंहासन बत्तीसी देखने गए वो पुलिया पार करके जाना पड़ता है
पुलिया में मस्त डेकोरेसन था एक दम फोटो खिचाने
लायक एक झन से रेक्वेस्ट करके फोटो खिचाए अउ पहुच गए सिंहासन बत्तीसी इसका
कहानी पूरा हम 4 थी क्लास में पढ़े थे सिंहासन में 32 पुतलियाँ थी जो स्टोरी सुना
के सवाल पुछती थी असल में राजा विक्रम के गाथा का गुणगान करती थी वो, विक्रम-बेताल भी हम पढ़े थे, सीरियलों देखे थे 2
एपिसोड दूसरे एपिसोड मे हम धरा गए काहे
रानी रूपमति का महल
कि
सीरियल साढ़े तीन बजे आता था अउ स्कूल चार बजे छुटता था भाग के गए थे वो भी पड़ोसी
के घर में उस दिन हम पकड़ा गए अउ खुबे मार खाये
थे पापा से तब से भागना बंद। वहा से महाकालेश्वर मंदिर भी दिख रहा था जल्दी
से हम महाकालेश्वर पहुच गए इनहा प्रसाद खरीद लिए काहे कि जूता खूब महंगा था हमारा
अब कोनो दुकान में तो टिकाना था, एक दम
राइट टाइम पे पहुचे थे उसी टाइम आरती हो रहा था एक घंटा लगा दर्शन में
मंदिरो बड़ा शानदार था वहा दीवार पे 12 ज्योतिर्लिंग का फोटो भी बना हुआ था मन किया
सब जगह कभी न कभी जाएँगे ही। वहा से निकले आटो पकड़े सीधे स्टेसन इंदौर कि गाड़ियो
लगी थी लास्ट ट्रेन थी पकड़ा गयी नही तो बस से जाना पड़ता सोचे खाना वही जाके खाएँगे
पानियों गिरना शुरू हो गया तित्तली तूफ़ान का असर था न सो सब तरफ आल इंडिया गिर रहा
था, मम्मी भी फोन करके बतायी कि घर पे लाइटों गोल है 3 घंटा
से अउ मोबाइल बंद होने वाला है उनका । फिर हम इंदौर पहुच गए खूब पानी गिर रहा था हम
मने मन कविता पढ़ रहे थे “ आज पानी गिर रहा है बहुत पानी गिर रहा है रात भर गिरता
रहा है प्राण मन धीरता रहा है” इंदौर मे स्टेशन के बाहर पूरा पानी भर गया था हमारा
जूता भी पूरा भीग गया पासे में बस स्टैंड था आटो धर के पहुच गए एगो होटल में पहले
खाना खाये काहे कि 10 30 बज गया था फिर होटल वाले से आसपास सस्ता सा लाज पुछे, अकेले लिए अब
होटल ताज तो ढूंढेगे नही न अउ सुब्बे सुब्बे गाड़ियो पकड़ना था बस स्टैंड से ही सो
पासे में एक लाज में रुक गए अउ जल्दी से जा के मोबाइल चार्ज मे लगाये अपना फ़ेस बूक
एक्टिवेट करके देखे 10 मिनट के लिए फिर डीएक्टिवेट कर के सो गए ।
सुब्बे
4 बजे नींद कुल गया हम जागे जागे सोये रहे बहुते पानी गिर रहा था लाइटों गोल हो
गया वहा भी पर हमको ये मौसम के वजह से नही बल्कि एमपी में बिजली के किल्लत के वजह
से हमको लगा 6 बजे उठे 6 30 तक रेडी हो गए
बाहर गए पूरा बस स्टैंड में पानी भरा हुआ था भीगते भीगते एगो बस में चढ़ के बईठ गए
ये बस वाला भी जाने का नाम नहीं ले रहा था लास्ट में आठ बजे वो हम 5 सवारियों को
दूसरे बस में सिफ्ट कर दिया खूब गुस्सा आया उसके ऊपर पर उसके गाड़ी मे सवारी ही नही
थे अउ गज़ब पानी गिर रहा था तो हम बोले कुछ नही चुपचाप दूसरे बस में बईठ गए अउ अगल बगल सीन देख देख के आगे यात्रा का हिसाब अउ
प्लानिंग करने लगे बीच बीच मे बगल वाले इसे इन्फोर्मेसन भी ले लेते थे कुछ कुछ, 2 घंटे बाद हमारी गाड़ी चोरल घाटी से गुजर रही थी शानदार नज़ारा था मौसमो
गज़ब का था पानी रुक नही रहा था खिड़कियो से अंदर टपक रहा था, कहीं
कहीं खूब कोहरा भी था हमको एकदम से मैनपाठ का याद आने लगा हर मोड को वहा के किसी
मोड से कंपेयर कर रहे थे इसकी हाइट फलाने मोड से कम है यहा घुमाव ज्यादा है यहाँ
कम है इस टाइप से फिर 12 बजे हम ओंकारेश्वर पहुच गए उतर के एटीएम गए पैसा निकाले
फिर पैदल चल दिये मंदिर के लिए नर्मदा नदी का पूल पार करके 15 मिनट लगा मंदिर
पहुचने में मंदिर के अंदर का आर्किटेक्चर
मस्त था उसका सात आठ को फोटो खिचे अउ
सेलफ़ी भी लिए दर्शन किए इनहा भी ज्योतिर्लिंग है न, प्रसाद
चढ़ा के बाहर आ गए फिर नीचे नदी किनारे घाट पे चले गए यहाँ पानी नही गिर रहा था नदी
किनारे कई लोग स्नान कर रहे थे हमारा भी मन हुआ पर डर लगा कहीं कोई मोबाइल अउ पर्स
पार कर दिया तो ये सोच के नही नहाये घाट पे, किनारे किनारे
परतदार चट्टानें थी एक दम गज़ब फोटोओ मस्त आता वहा पे पहली बार अकेलापन हमको खल रहा था काहे कि हमारा फोटो खिचने को कोई
नही था अब कितना सेलफ़ी ले आदमी, वही पे नदी में एक ठे डैम भी
बना हुआ था पर डैम तक जाने का हम नही सोचे काहे कि महेश्वर जल्दी पहुचना था बादलो
छाया हुआ था 2 बार पूरा भीग के सुख चुके थे सो पैदल पैदल बस स्टैंड तरफ आ गए आटो
नही पकड़े काहे कि एगो भाई साहब बोले थे पासे में है बीएस स्टैंड पर वो तो 2 केएम
दूर निकला, वहाँ लेकिन अच्छा जंगल था बीच में पेड़ में गिलहरी
अउ नया नया टाइप का दो तीन चिड़िया भी दिख गए, एक ठे कोयल भी
बैठी थी उसके साथ हम सेलफ़ी लेने का कोशिश किए लेकिन वो उड़ गयी वहा भी स्वक्छ भारत वाला कचरा बीनने वाली
गाड़ी दिखायी दी हम बोले अब दुनो जगह बीजेपी का गोरमेंट है इतना तो कापी पेस्ट
रहेगा ही उसके बाद एगो मोटरसाइकल वाले
भैया से लिफ्ट ले के बस स्टैंड पहुच गए पर बस एक घंटे बाद थी सो हम महेश्वर रोड
में लिफ्ट लेने के लिए खड़े हो गए हाथ दिखाने लगे बड़ी देर में एगो लईका गाड़ी रोका
बोला फलना गाँव तक जाएगा हम बोले महेश्वर रोड पे जहा तक जाओगे वही उतार देना वो
पीछे सीट मे दस बारह ठो बोरा रखा था हम उसी पे बईठ गए हम उचाई पे बैठे थे उसका सिर
हमारे पेट तक आ रहा था, हल्का हल्का बूँदा बाँदी हो रहा था
थंडी हवा आ रही थी हमको मजा आ रहा था सब कार वाले झाँक झाँक के हम दोनों को देख
रहे थे काहे की सीटिंग अरेंजमेंट तनी उटपटांग था न, करीब आठ
के एम जाने के बाद वो हमको उतार दिया फिर हम दूसरा गाड़ी देखने लगे तब्बे एक स्कूटी
वाला लड़का हमारे लिए रोका उसके साथ हो लिए अब
ओंकारेश्वर
लेकिन
पानी बढ़ गया था भीगने लग गए लेकिन सिर छुपाने के लिए जगह भी नही था, हम दोनों जंगल में बीचो बीच थे, अब वो लईका के मुह
पे भी पानी पड़ने लगा तो वो गाड़ी नही चला पा रहा था हम बोले पेड़ के नीचे रोक लो हम अपना मोटा
वाला गमछा निकले अउ दोनों ढका लिए उसको हम बताये कि जब हम हास्टल में थे तो मेस तक
गिरते पानी कंबल लेके दस बारह लड़के उसके नीचे हो के खाना खाने जाते थे, हास्टल के लईका छाता नही रखते हैं काहे कि चोरी हो जाता है चाहे टूट जाता
है दोनों कारण खूब दुख होता है यही कारण बिना छाता खुशहाल छात्र जीवन अउ ऊपर से
भीगने का मजा उतो अल्टिमेट होता है फिर हम वो लईका से बोले तुम गाड़ी चलाओ हम गमछा
से तुमको ढँके रहेंगे वो गाड़ी चलाने लगा हमारा गमछा पीछे 2 मीटर तक लहरा रहा था हम
दोनों को देख के लड़के जो भीगने से बचने के लिए खड़े थे,
चिल्ला रहे थे अउ लाइक वाला अंगूठा दिखा रहे थे काहे कि कभी देखे नही होंगे न अइसे, हमको भी घनघोर बरखा में भीगते हुये जाने मे मजा आ रहा था मोबाइल अऊ पर्स
को प्लास्टिक के अंदर डाल के बैग में रख दिये थे कपड़ा अउ बैग दुनों भीग गया था।
चार
गाँव आगे जाके एगो कस्बा था वही से हमको बस पकड़ना था हम उसको रेक्वेस्ट किए की यार
बस स्टैंड तक ड्रॉप कर दो, अच्छा लईका था हेल्प कर दिया हमारा
फिर हम महेश्वर के लिए बस पकड़ लिए अउ निकल गए। अब हम अपने प्लानिंग के हिसाब से 2
घंटा लेट हो चुके थे 3 बजे महेश्वर पहुचे फिर एक होटल में गए वहा के भट्ठा के
सामने खड़े हो के चाय पीते पीते कपड़ा सुखाये स्कूल के टाइम में अइसे ही फुटबाल खेल
के आते थे फिर हास्टल में जा के कपड़ा सुखाते थे फिर घर जाते थे भीगे भीगे घर जाने
से कूटा जाने का डर रहता था, अइसे तो हमारे बचपने में पापा
अउ गुरुजी लोग कुटाई मशीन हुआ करते थे न, किसी पे भी गुस्सा
आए दिमाग खराब हो मूड फ़्रेश हमारे पे ही होता था। महेश्वर मे घूमे कैसे ये होटल के
मालिक से पुछे, वो पूछा कौन कौन है हमारे साथ हम बताये अकेले
हैं तो उ हमारा मुँह ताकने लगा बोला “अकेले , अरे ऐसे भी कोई
घूमता है क्या “ हम बोले ये कोन सी बड़ी बात है हमी को देख लो फिर उसको अकेले घूमने
का कई गो कारण अउ फायदा गिनाए, हमारे ही एज का था हमारे
बातों नें जल्दीये एग्री कर गया उसके बाद रास्ता वास्ता सब बताया उसके साथ आगे का
प्लानिंग पूरा सेट किए अउ निकल गए महेश्वर फोर्ट के लिए ये असल में महारानी
अहिल्या बाई का किला था रास्ते मे ताजिया उठा के ले जा रहे थे हमारी मम्मी ताजिया
के लिए साबिर, जो राजधानी बस का कंडेक्टर था, को पैसा देती थी वो वापसी मे छुहारा काजू किशमिश कुछ न कुछ ला देता था इस
लिए ताजिया का हमको ख़याल रहता है वो का है की जब हम छोटे थे तो कई ठे फल फूल हाथी
गेंडा ठठेरा ये सब खाली ककहरा के किताब में देखे थे या फिर टीबी मे गाँव में ये सब
मिलता नही न था । ताजिया का भीड़ को पार करते हुये हम किला में पहुच गए महारानी
अहिल्या बाई का पूरा जीवनी हम स्कूले टाइम पढ़े थे, पापा थे मास्टर
आदमी खूब किताब घर में लाते थे, पूरा एक अल्मारी भरा हुआ था, किला के अंदर गए गार्डन में महारानी जी का मूर्ति लगा हुआ था जहा दरबार
लगता था वहा गए महारानी का पालकी हथियार पुजा स्थान जिसमे सोने की पालकी चाँदी का
बर्तन अउ खूब सारा समान था उसके बाद नीचे साइड शंकर जी का खूब सुंदर मंदिर था ये
मंदिर भी बहुते शानदार था एहि नाम से अब फिर अकेलापन खलने,
लगा केतना सेलफ़ी लें कॉलेज के बच्चे लोग ग्रुप में घूम रहे थे एगो लईका हम से
ग्रुप का फोटो खिचने का रेक्वेस्ट किया हम खिच दिये अउ उससे अपना भी फोटो खिचवा
लिए फिर नीचे नर्मदा नदी के घाट मे चले गए यहा नदी की चौड़ाई ज्यादा थी बोटिंग भी
हो रहा था खूबसूरत मौसम अउ खूबसूरत नज़ारा वही रुकने का मन कर रहा था पर का करें
रात में मांडू पहुच जाने का प्लान था सो 10 मिनट रुक के निकल गए अउ जा के धार जाने
वाली बस पकड़ लिए इनस्टा ग्राम मे फोटो डाल दिये आज का, शाम
होते होते उस स्टापेज पे पहुच गए जहा से गाड़ी बदलना था एक ठो भाई साहब मिल गए लोकल
थे हम उन्ही से बतियाने लगे वो हमको मांडू घूमने का बढ़िया टिप्स दे दिये, बोले जा के राम मंदिर धरम शाला में रुक जाना बढ़िया व्यवस्था है खर्च भी
कम लगेगा तीन चार प्लेस भी बता दिये की फलना जगह जरूर जाना असल मे सनडे को ही
हमारी ट्रेन थी भोपाल से वापसी की, तो हमारा प्लान था 10 बजे
तक एनी हाउ इंदौर के लिए बस पकड़ लेंगे, वहा बहुते कुहरा था
सब तितली तूफ़ान का असर था, टपरी था पास मे ठंढा भी खुबे लग
रहा था सो चाय बनवाये अउ आग तापते हुये बतिया रहे थे उ भी आश्चर्य कर रहा था हमारे
अकेले घूमने पे फिर हम एक गाड़ी पीक अप टाइप थी उसी मे लिफ्ट ले लिए, अंधेरा हो गया था कुहरा भी इतना ज्यादा था की रोडवे नही दिख रहा था ड्राइवर
बार बार हाथ से काँच साफ़ कर कर के गाड़ी
चला रहा था, साथ वाले भाई साहब एक गाँव पहले उतर गए, ठंढ से हम काँप रहे थे साल निकाले
ओढ़ लिए अउ बैठे थे, थोड़ी देर बाद हम मालवा के सबसे
खूबसूरत जगह पे थे, प्लानिंग के हिसाब से सब कुछ किए, जा के धर्मशाला मे कमरा ले लिए फिर जाके होटल मे खाना खाये फिर कमरे मे
जाके घर बात किए अउ हमारे कॉलेज के बैच मेट का बर्डे था फोन लगा के विश किए फिर सो
गए, सुबह मांडू मे सब घूमने वाला जगह 6 बजे खुल जाता है तो
हमको 6 बजे पहुचना था। सुब्बे 5 बजे उठके नहा धोवा लिए अउ निकल गए अपने पहले
डेस्टिनसन के तरफ पैदल जा रहे थे तो एक मोटरसाइकल वाले भाई साहब मिल गए उधर ही जा
रहे थे उनसे लिफ्ट ले लिए खूब कुहरा था
महेश्वर किला व मंदिर
उस टाइम 5 45 हुआ था रोड लाइट जल रही थी लेकिन पानी
नही गिर रहा था 24 घंटा लगातार पानी गिर चुका था वो भाई साहब पर्यटन विभाग के ही
थे उनसे भी हम टिप्स ले लिए, असल मे जहाज महल के गेट का वो ही जा के ताला खोले, टिकट
काटने वाले से हम टिकट लेके अंदर चले गए एक दम सुनसान था 6 बज रहा था जहाज महल, हिंडोला महल, जलमहल अउ चम्पा की बावली ये सब देखे, खंडहर के कोना कोना मे जाने मे डरो लग रहा था एक तो सुनसान भी था ऊपर से
हम डरपोक टाइप भी हैं तनी मनी, अउ माउंटेन डिव भी नही पीते
हैं.. हे हे, चम्पा की बावली देख के तो सही मे डर लग गया का
हे की भूत वाले फिलिम में अइसे ही कुआँ से हाथ बाहर निकल के हिरोइनी को अंदर खिचता
है, खूब देखे है हम पूरा झाँके एक बार अंदर, फिर वहा से जल्दीये भागे कहीं से कोई हाथ बाहर न निकल जाये उसके बाद जहाज
महल के पास फिर वापसी मे आ रहे थे की एक थे मैडम गिलहरी अउ चिड़िया लोगो को दाना
डाल रही थी उनसे रेक्वेस्ट करके दु गो फोटो खिचा लिए फिर 7 बजे तक हम बाहर थे भाई
साहब बोले थे लोहानी गुफा जाने के लिए कोई
दिख नही रहा था न तो लिफ्ट देने वाला न ही आटो वाला पैदल ही निकल गए करीब एक केएम
पे था लोहानी गुफा थोड़ा पहाड़ उतरना पड़ा जंगल तरफ पर सीढ़ी बना हुआ था, हमको जंगल मे सुनसान और कुहरे वाला मौसम के नाम से जाने में डर तो लग रहा
था, भालू वालु न मिल जाए कहीं ये ही सोच रहे थे, एक बार मैनपाठ मे ही हमारा भालू से फ़ेस टू फ़ेस सामना हो चुका है, तब दोनों एक दूसरे से डर के उल्टा भाग लिए थे, पर
हम भी सोचे रोज रोज मांडू तो आयेंगे नही न और वइसे भी इस साल हम कई ठे गुफा रामगढ़
(सरगुजा), बोरा केव (अरकू), खंडागिरी
(भुवनेश्वर) भीम बेटका (भोपाल) अउ भृतहरी गुफा (उज्जैन) गईबे किए थे सो इनहा भी
जईबे करेंगे ये सोच के कदम बढ़ा दिये अउ पहुच गए अरे का बताये एक दम गजबे का लोकेशन
था उ वंडरफूल वाला ब्यूटीफूल सामने घाटी
में कुहरा एतना ज्यादा, लगे की बादल गिर गया है पहाड़े पे, दिल खुश हो गया
अइसा गज़ब का जगह अउ फोटो खिचने को कोई नही, एक दो लोग को हम
साथ चलने को पुछबे किए थे, मने मन दु गो गाली बक दिये, आए रहते तो कम से कम फोटउवा तो खिचा जाता, दु गो
सेलफ़ी मारे सब तरफ अउ फोटो खिच के वापस भागे, हड़बड़ी नही था, डर था एहि नाम से उसके बाद जामी मस्जिद गए फिर वहा से निकल के सायकल किराए पे
लिए रानी रूपमति के महल जाने के लिए बस स्टैंड से 6 केएम पे था न, अउ निकल गए ज़िंदगी एक सफर है सुहाना पे.... रोडवे के किनारे खूब सारा जगह
था कुल 51 प्वाइंट है घूमने वाला, पर हमको तो समय साधना था 3
बजे गाड़ी थी हमारी भोपाल मे, अभी 8 बज रहा था 8 30 तक हम
पहुच गए
गेट पे सुब्बे वाले भाई साहब ये ही पे बैठे थे जो जहाज महल का ताला खोले थे, टिकट ले के अंदर घुसे बाज बहादुर का महल देखे फिर रूपमति के महल तरफ चल दिये आसे पास मे है दोनों बाज बहादुर का नीचे है 200 मीटर ऊपर जाने मे रानी का महल है मस्त धूप खिल गया था अभी सुहाना मौसम था बिल्कुल सर्दी की सुबह नरम नरम धूप टाइप वो गाना है न, दिल ढूँढता है फुर्सत के पल रात दिन, वो ही हमको याद आ रहा हैं मौसम बताने के लिए | स्टैंड पे साइकल रखे फिर एगो लईका खीरा बेच रहा था उससे खरीद के खीरा खाये, फिर ऊपर की सीढ़ी चढ़ने लगे वहा पे एगो सर अउ मैडम थे कोई कॉलेज के स्टूडेंट रहे होंगे हम से फोटो खिचने को कहे, हम संकोच मे पहल कर नही पा रहे थे अब वो ही रेक्वेस्ट किए तो हम भी उनसे तीस चालीस गो फोटो खिचवा लिए महल का दीवार पत्थर का है न, उसमे फोटो मस्त आ रहा था, नीचे का पत्थर ऊपर के पत्थर से एक उंगली बाहर निकला हुआ था उसी पे चढ़ के फोटो खिचाए अइसा लग रहा था जैसे छिपकली टाइप दीवार पे चढ़े हैं, सीढ़ी पे बईठ के एक से एक पोज मे फोटो खिचा के फिर सबसे टॉप पे रूपमति पवेलियन पे पहुच गए ये मालवा का सबसे ऊँचा जगह था पश्चिम मे दूर पे नर्मदा नदी दिखायी दे रही थी सब तरफ पूरा दिखायी दे रहा था, एक दम मस्त सीन था तेज ठंडी हवा आ रही थी एक ओर से, मन एक दमे शांत था बढ़िया लग रहा था 10 मिनट बईठ गए वही पे, फिर निकल लिए अब ट्रेन पकड़ने की हड़बड़ी थी, 9 30 हो चुका था, जल्दी से वापस आए समान लेके निकल गए बस आधे घंटे बाद थी धार तक, सो लिफ्ट लेके टपरी तक आ गए 15 केएम, जहा बीते रोज शाम को चाय पिये थे, यही से धार वाली बस पकड़ लिए उस बस का ड्राइवर मंजा हुआ ड्राइवर था वो जो जो गाना चला रहा था उसी को सुन के हम जान गए, चढ़े तब वो लड़की बहुत याद आती है फिर बहुत प्यार करते हैं तुमको सनम फिर नज़र के सामने जिगर के पास, ज्यादा ढिचिक ढिचिक वाला गाना सुन नही रहा था ये ही से कह रहे है की पुराना ड्राइवर था वो, अउ फिर हम धार पहुच गए वहा पहली बस छूट गयी एटीएम से पैसा निकालने मे, वहा की बस पङ्क्चुवल थी ड्राइवर से पैसा निकालने भर का टाइम रुकने को बोले तब भी नही रुका फिर अगला बस पकड़ के इंदौर केलिए निकल गए सोचे उतरने के बाद बिना खाये पिये भोपाल का गाड़ी पकड़ लेंगे पर हमको का पता था कि चार्टेड बस का अलग स्टैंड है अउ वहा पहुचते ले 1 30 बज जायेगा लेकिन इंदौर का सीटी बस सेवा हमको खूब पसंद आया चार्टेड बस पकड़ के भोपाल शाम को 6 बजे पहुचे हमारी गाड़ी तो निकल गयी थी अब पप्पू के यहा जा के रुक गए शाम मे एक दिन के छुट्टी के लिए मैसेज कर दिये डिप्टी सर अउ एसएमएम सर को अगले दिन सुब्बे सुब्बे वीकली
ट्रेन पकड़ के नागपुर चल दिये सीटो मिल गया वो ट्रेन में, सोचे थे नागपुर में डिपो जा के हमारे पुराने एसएमएम दास सर से मिल के रात मे शिवनाथ पकड़ लेंगे लेकिन जैसे पहुचे तिरुनेवेली बिलासपुर खड़ी थी वो भी वीकली गाड़ी है न, सोचे सीट मिले जायेगा इसमे तो ये ही नाम से चढ़ गए, मिल भी गया, अगल बगल वालो का बात सुनते सुनते आ रहे थे टीटी हमको अपना सीट दे दिया था अउ समान हमारे जिम्मे लगा के घूम रहा था स्टाफ-स्टाफ भाई-भाई टाइप, बगल वाले सरकार को खूब गरिया रहे थे पेट्रोल राफेल ये सब के नाम से हम आराम से सुन रहे थे उसके बाद वो लोग रेल्वे को भी कोई कोई बात के लिए गाली देने लगे तब हम से रहा नही गया हम भी उल्टा खूब सुना दिये हर बात का जवाब दिये एक दम बढ़िया से काहे कि वो वो लोग लेट लतीफी सब के लिए गरिया रहे थे मेगा ब्लॉक काहे ले के रखे हैं कर के हम भी बता दिये रेल्वे कोई खिलौना नही है वो लोग को पैसेंजर सेफटी का पाठ पढ़ा दिये, अब भीड़ गए थे तो हम राफेल से लेके पेट्रोल अउ किसान सब बात पे अपना पक्ष रख दिये, का है की द हिंदु अख़बार का लेटर टु एडिटर वाला पार्ट देखे लेते हैं तो प्रोस कोंस सब पे तनी मनी आइडिया रहता है, एक ठो पीडबल्यूआई गोंदिया का स्टाफ भी था, वो बाद मे हमको बताया कि वो भी स्टाफ है फिर बोला बढ़िया से बता दिये भैया आप दोनों लोग को कुछ भी कहे जा रहे थे, अब धीरे धीरे शाम हो रही थी सीजी आ गया था रायपुर के दोस्त लोगो को फोन लगा के पुछे सब कहाँ कहाँ है सोचे मन करेगा तो उतर जाएँगे, सुब्बे लिंक पकड़ लेंगे लेकिन जम नही पाया सो सीधे बिलासपुर आ गए 9 30 बज गया था, मारवाड़ी मे जाके खाना खाये अउ चुचुहिया पारा वाले रास्ते से हेमुनगर पैदल पैदल निकल गए...।
जहाज महल मांडू
गेट पे सुब्बे वाले भाई साहब ये ही पे बैठे थे जो जहाज महल का ताला खोले थे, टिकट ले के अंदर घुसे बाज बहादुर का महल देखे फिर रूपमति के महल तरफ चल दिये आसे पास मे है दोनों बाज बहादुर का नीचे है 200 मीटर ऊपर जाने मे रानी का महल है मस्त धूप खिल गया था अभी सुहाना मौसम था बिल्कुल सर्दी की सुबह नरम नरम धूप टाइप वो गाना है न, दिल ढूँढता है फुर्सत के पल रात दिन, वो ही हमको याद आ रहा हैं मौसम बताने के लिए | स्टैंड पे साइकल रखे फिर एगो लईका खीरा बेच रहा था उससे खरीद के खीरा खाये, फिर ऊपर की सीढ़ी चढ़ने लगे वहा पे एगो सर अउ मैडम थे कोई कॉलेज के स्टूडेंट रहे होंगे हम से फोटो खिचने को कहे, हम संकोच मे पहल कर नही पा रहे थे अब वो ही रेक्वेस्ट किए तो हम भी उनसे तीस चालीस गो फोटो खिचवा लिए महल का दीवार पत्थर का है न, उसमे फोटो मस्त आ रहा था, नीचे का पत्थर ऊपर के पत्थर से एक उंगली बाहर निकला हुआ था उसी पे चढ़ के फोटो खिचाए अइसा लग रहा था जैसे छिपकली टाइप दीवार पे चढ़े हैं, सीढ़ी पे बईठ के एक से एक पोज मे फोटो खिचा के फिर सबसे टॉप पे रूपमति पवेलियन पे पहुच गए ये मालवा का सबसे ऊँचा जगह था पश्चिम मे दूर पे नर्मदा नदी दिखायी दे रही थी सब तरफ पूरा दिखायी दे रहा था, एक दम मस्त सीन था तेज ठंडी हवा आ रही थी एक ओर से, मन एक दमे शांत था बढ़िया लग रहा था 10 मिनट बईठ गए वही पे, फिर निकल लिए अब ट्रेन पकड़ने की हड़बड़ी थी, 9 30 हो चुका था, जल्दी से वापस आए समान लेके निकल गए बस आधे घंटे बाद थी धार तक, सो लिफ्ट लेके टपरी तक आ गए 15 केएम, जहा बीते रोज शाम को चाय पिये थे, यही से धार वाली बस पकड़ लिए उस बस का ड्राइवर मंजा हुआ ड्राइवर था वो जो जो गाना चला रहा था उसी को सुन के हम जान गए, चढ़े तब वो लड़की बहुत याद आती है फिर बहुत प्यार करते हैं तुमको सनम फिर नज़र के सामने जिगर के पास, ज्यादा ढिचिक ढिचिक वाला गाना सुन नही रहा था ये ही से कह रहे है की पुराना ड्राइवर था वो, अउ फिर हम धार पहुच गए वहा पहली बस छूट गयी एटीएम से पैसा निकालने मे, वहा की बस पङ्क्चुवल थी ड्राइवर से पैसा निकालने भर का टाइम रुकने को बोले तब भी नही रुका फिर अगला बस पकड़ के इंदौर केलिए निकल गए सोचे उतरने के बाद बिना खाये पिये भोपाल का गाड़ी पकड़ लेंगे पर हमको का पता था कि चार्टेड बस का अलग स्टैंड है अउ वहा पहुचते ले 1 30 बज जायेगा लेकिन इंदौर का सीटी बस सेवा हमको खूब पसंद आया चार्टेड बस पकड़ के भोपाल शाम को 6 बजे पहुचे हमारी गाड़ी तो निकल गयी थी अब पप्पू के यहा जा के रुक गए शाम मे एक दिन के छुट्टी के लिए मैसेज कर दिये डिप्टी सर अउ एसएमएम सर को अगले दिन सुब्बे सुब्बे वीकली
ट्रेन पकड़ के नागपुर चल दिये सीटो मिल गया वो ट्रेन में, सोचे थे नागपुर में डिपो जा के हमारे पुराने एसएमएम दास सर से मिल के रात मे शिवनाथ पकड़ लेंगे लेकिन जैसे पहुचे तिरुनेवेली बिलासपुर खड़ी थी वो भी वीकली गाड़ी है न, सोचे सीट मिले जायेगा इसमे तो ये ही नाम से चढ़ गए, मिल भी गया, अगल बगल वालो का बात सुनते सुनते आ रहे थे टीटी हमको अपना सीट दे दिया था अउ समान हमारे जिम्मे लगा के घूम रहा था स्टाफ-स्टाफ भाई-भाई टाइप, बगल वाले सरकार को खूब गरिया रहे थे पेट्रोल राफेल ये सब के नाम से हम आराम से सुन रहे थे उसके बाद वो लोग रेल्वे को भी कोई कोई बात के लिए गाली देने लगे तब हम से रहा नही गया हम भी उल्टा खूब सुना दिये हर बात का जवाब दिये एक दम बढ़िया से काहे कि वो वो लोग लेट लतीफी सब के लिए गरिया रहे थे मेगा ब्लॉक काहे ले के रखे हैं कर के हम भी बता दिये रेल्वे कोई खिलौना नही है वो लोग को पैसेंजर सेफटी का पाठ पढ़ा दिये, अब भीड़ गए थे तो हम राफेल से लेके पेट्रोल अउ किसान सब बात पे अपना पक्ष रख दिये, का है की द हिंदु अख़बार का लेटर टु एडिटर वाला पार्ट देखे लेते हैं तो प्रोस कोंस सब पे तनी मनी आइडिया रहता है, एक ठो पीडबल्यूआई गोंदिया का स्टाफ भी था, वो बाद मे हमको बताया कि वो भी स्टाफ है फिर बोला बढ़िया से बता दिये भैया आप दोनों लोग को कुछ भी कहे जा रहे थे, अब धीरे धीरे शाम हो रही थी सीजी आ गया था रायपुर के दोस्त लोगो को फोन लगा के पुछे सब कहाँ कहाँ है सोचे मन करेगा तो उतर जाएँगे, सुब्बे लिंक पकड़ लेंगे लेकिन जम नही पाया सो सीधे बिलासपुर आ गए 9 30 बज गया था, मारवाड़ी मे जाके खाना खाये अउ चुचुहिया पारा वाले रास्ते से हेमुनगर पैदल पैदल निकल गए...।
हिंडोला महल मांडू
ब्रिजनंदन सिंह